पुष्पांजलि पार्ट - १ | Pushpanjali Part -i

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Pushpanjali Part -i by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य--मद॒न-दहन । ই. एेरावत-उतसाद-दित-ताडन सें हद्‌ जैन । ता कर सें परस्थे जुष तासु मुदित खर रन ॥२०॥ (२३) तासु मीत बसन्त, अर रति, महा भय सें पामि । करत मन सङ्कल्प बहु विधि चले ता संग खानि ॥ प्रानह ते काज साधन परम प्रिय अनुमानि । गया स हिमवान पे जँ तपत शिव तपखानि ॥ २९॥ হেই), समाधिख मुनीन के तप तैज के रिपु घार । मार-मद्‌ तहं धारि तञ भे प्रकट मधु बरजोर ॥ हात उत्तर श्रार खर प्रवृत्ति देखि अकार । জ্বী दच्छिन वायु मुखते मनड श्वास बिहार ॥२२॥ (२४-२०) भूषनन से जरितः, नक्तसिख भरी रूप कलाम ] मदन मद सें छकी, अन्चुपम चारुता की धाम ॥ (रदे) बज्ञत नूपुर मन्द गति-बस अशुरिन यहि भाँति | मनहु तन धरि सुरुचि, पगपरि, रूप बरनत जाति ॥ २३ ॥/ जटित जेहरि तड़ित सी युग शुर्ुफ पै छबि देत । भानु अरु सितभानु फे! मच करति से सखदेत ॥ हेन ताड़ित तान सुन्दरि चरन सरें बिसराय । पट्छचित हे उच्यो एकि असक रीति विहाय ॥ २७ ॥ (रद). मझरि चारु रसारून की ऋतुराज मने। बर बान बनाये | भैरन सर किसले करि भूषित मानहु नाम मनेज लिखाये ॥ बानन पत्र समान तिन्हें रछखि केोकिल कूक पुकारि सुनाये | “हे।हु सचेत, अहे! बिरही जन | चाहडु जे निज भान बचाया | - . ॥ ८५॥ (रऽ)




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