गुलामी से उद्धार | Gulami Se Uddhar

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मूलचन्द्र अग्रवाल - Moolchandra Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ | छोटे छोटे बच्चोपर में अपता प्रभाव भी डालना चाहता धा । १६ चर्षहक मे घरावर अपने अन्तःकरणके साथ সুভ करता रहा। अब मेरे लिये यह असम्थव हो गया है कि मे अपती भीतरी इच्छाके घिप्टीत जीवन व्यदीत करू । मैने वर्षोसि ज्ो निश्चय अर रखा हे, उसीकों घर छोड़कर पूरा करना चाहता हूं। में बृद्धावस्थामे इस जीवनके भारको असह्य मानकर अधिक शान्ति- का अमिलापी हूं। दच्चो सी अब अवस्पामे अधिक हो गये हैं और मेरे प्रभावणी आवश्यकता नहीं रखते | तुम सब इतने खुखनमें यञ्च ते कि मेरी यनुपस्थितिसे विशेष कष्ट न दोगा । में ७० वे घषमे प्रवेश कर रहा हूं। प्रत्येक वृद्ध मनुष्य जीपतदा অন্ষিল समय ईश्वरीय सेवार्में गाना चाहता है। रिन्‍्दू ६० पणदी अवस्था प्राप्त करनेपर जङ्कलोमे चले जाते है । धामिषः मनुप्यको बृद्धाव्स्थामे क्या दंसी-मजाक, खेल-कूद অহ भा सकता ट १ अपने अन्तःकरण और बाहरी जीवन- ই; ভীত দই जिस थुद्धदा अनुभव वार रहा हूं, उसका अन्त दाएठा ए | यदि में खुले शैदाव घर छोड़कर जानेकी तैयारी करता, तो त्रेय घतुनय-विनय, तक्ष-वितकंसे मुदे वशम करनेकी अवश्य है लेष्टा करते । मेय निश्चय उख समय शिधिल पड जाता, जिखदे सनुसार साम॒ करना मँ प्रम सावकश्यक सप्रभता हं । ল কালা करता हू, वि यदि पेरे इस कार्यसे तुफ्हें ज़राभी कए টা, तो तुम मुझे क्षमा प्रदान करोयी। सुमे अब प्राणप्यारी 1




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