गाँव का बुनकर | Gaanv Ka Bunkar

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Gaanv Ka Bunkar by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ दिया गया ¦ इससे चरखा श्रौर करघा जो हमारे गांवों को बुनियाद थे वे खत्म होने लगे । उनमें लगी वुनकरो श्रौर कत्तनों की रोजी इग्लेंड कौ मीनं छीनने लगौ । इसके वाद के भारत के कपड़ा ` उद्योग फो कहानी बेबस, गरीव बुनकर श्रौर कत्तनों के खून से लिखो हई कहानी हैँ 1 “पिता जी इसके बाद क्या हुश्रा 1 “इसके बाद, हाथ कते सुत को दफना कर हाथ करघे का उद्योग एक बार फिर जिंदा हुआ पर हाथ कते सूत की जगह पर श्रव वह मशीन का कता सूत इस्तेमाल करने लगा था \ यह्‌ सतु १६०० के श्रासपाक की बात है । उस समय हाथ करघा उद्योग १९१ करोड़ सेर मशीन सृत हर साल इस्तेमाल करतो थी श्रौर ६४ करोड़ गज कपड़ा हर साल तेयार करता था। जब कि कपड़े बुनाई के कारखाने उस समय साढ़े चार करोड़ सेर सूत इस्तेमाल करके ४२ करोड़ गज कपड़ा बनाते थे । “इस सब को सुझे बताने का मतलब ?” “यही कि उस जमाने में बुनाई के कारखाने जितना सूत इस्तेमाल करते थे उससे दुगना सूत हाय करघा काम में लाता था । उस समय दुनने की मिलों




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