तरुणके स्वप्न | Tarun Ke Swapn

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Tarun Ke Swapn by गिरीशचन्द्र जोशी - Girishchandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देशकी पुकार जहां जिस हालतमें हो चले आओ । चारों तरफ साका महल शंख गूंज रहा है। वह देखो पृर्वाकाशमें भारतके -भाग्य देवता तरुण तपसके ` रूपये उदय हो रहे है ! स्वाधी- , नताका पुख्य प्रकाश पाकर चीन, जापान, टकी, सिश्रतक “विश्व-परिषद्सें उच्चतम स्थानपर पहुँच गये हैं । क्त्या अब भी तुम मोह निद्राम सोते स्टोगे ? | उठो | ज्ञागो | अंब देर करनेसे काम नहीं चलेगा। अठारहंवी शताज्दीमें विदेशी वशिकोंको घरका दरवाजा ` दिखलाकर तुम्हारे पू्वे पुरुषोंने जो पाप किया था, वीसर्व शताब्दीये उसी पापक्रा प्रायर्चित करना दोगा । ` भारतकी नव जाग्रत राष्ट्रीय आत्मा मुक्तिके लिये हाहा- कार कर रही हैं।इसीलिये कहता हूँ, तुम सब. चले आओ | भइया दूजकी राखी बाँधकर, सात-सन्दिससें दीक्षा -लेकरः प्रतिज्ञा - करो कि साकी कालिमा दूर करोगे। भारतकोः पिर स्वाधीनताके रसिंद्यासनपर चैटाच्रोगे ओर स्वेस्वहरा भारतलच्ष्मी के लुप्त गोरव ओर सौन्दर्य “का पुनरुद्धार करोगे । -११ पोष १३३२ ( बंगला ) এ পিপি १३




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