ब्रह्मसूत्र प्रवचन भाग 1 | Brhamsutra Pravachan Bhag 1

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Brhamsutra Pravachan Bhag 1  by वेदव्यास - Vedvyasस्वामी अखण्डानन्द - Swami Akhandanand

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वेदव्यास - Vedvyas

Ved Vyas was a great and known poet during time of Mahabharat. He was the son of Satyawati and also was a step son of King Shantanu of Hastinapur. He wrote the book Mahabharata in which he told about the great war which happened almost 5000 years ago from now. He was also the writer of Shiva Purana and Vishnu Purana which were very important books in Hinduism. He was given the degree of Ved Vyasa.

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स्वामी अखण्डानन्द - Swami Akhandanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লালন बेठते हैं। वे हँसीमें राम और कृष्णकी अपेक्षा ब्रह्मकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन करते थे । उन्हीके अनुसार “यदि ब्रह्मको ठीक-ठीक ग्रहण नहीं किया जाय, तो वही बहा तुरन्त श्रमः बन जाता है ।' केसे ? तो देखिये : बहा ল্ন7২181-( লুল ইহসান লুল । ( अज्ञाससे, वर्णोके स्थान-परिबततनसे ) इसलिए आइये, ब्रह्मको हम ठीक-ठीक हृदयज्भुम करें। आपको एक सच्ची वात बताते हैं। झूठा अभिमान मत्त कीजिये कि आप जितना जानते हैं, उत्तना ही सच है । एक वस्तु ऐसी होती है जो नित्य होकर कालकी अनादि-अनन्त धाराके साथ वहती रहती है ! एक वस्तु ऐसी होती है जो भरपूर होकर देशके साथ रहकर देशके निर्देशमें अपनी व्यापकता कायम रखती है। एक वस्तु एेसी होती है, जो कार्यमे कारणरूपसे अनुस्यूत रहती दै। किन्तु एक वस्तु एेसी भी दि , जिसमें कालकी कलना नही, देशका देध्यं-विस्तार नहीं है ओर न वस्तुकी कारण-कार्यता ही है। काय्यके प्रागभावसे उपलक्षित, कालकी अनेकतामें एकरूपसे रहुनेवाली, देशके अन्तर और बाह्यका भेद स्वीकार न करनेवाली, कारण-भावसे भी रहित वह कौन-सी वस्तु है? वह कारणरूप बीज नहीं, क्योंकि वीजसे वाह्योन्मुख होता है। बीजसे अंकुर बाहर त्तिकलता है। वह कोई अवयव-समप्टिरूप नित्य काल नहीं और न देष्यें-विस्तार-समष्टिरूप परिपूर्ण देश ही है। वह परिच्छेद- सामान्यके अत्यन्ताभावसे उपरक्त तथा उनका विवर्तीं अधि- छान, प्रत्यकं-चेत्तन्यामिच, देश-काक-वस्तुके परिच्छेदोसे असंग, - अह्यसु चका प्रायसिक परिचय | | ५




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