चौबे का चिट्ठा | Chobe Ka Chittha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चोबेजीका परिचय ।
संहते रोग चिदानन्दकछो पागरू कहते ये । उसंकी चित्तवृत्ति कुछ विल-
क्षण प्रकारकी थी । उसकी बातचीत, कामकाज, रहन-सहन जादि
सभी यातें अनोखी थीं। यह बात नहीं कि वह कुछ लिखा पठा नहीं था ।
उसे कुछ अंगरेजी ओर कुछ संस्कृत आती थी । किन्तु जिस विधासे अथोपा-
जन न हो, वह विद्या किस कासकी ? उसे में विद्या ही नहीं कहता। चाहे
कोई केसा ही मूर्ख क्यों न हो, भछे ही उसे लिखने पढ़नेके नाम केवल
भपने दस्तखत करना ही घाता हो; किन्तु यदि उसकी साहब-सूबाओों
तक पहुँच हो और उसे झठी-सच्ची बातें बनाकर अपना कास निकालना जाता
हो, तो मेरी समझमें वह पण्डित है और चिदानन्द जैसा विद्वान्, जिसने
बीसों पुस्तकें पद डालीं हों, बिलकुल मूल है ।
चिदानन्दको एक बार नौकरी मिल गईं थी। एक साहब बहादुरने उसकी
जँगरेजी सुनकर अपने आफिसमे छूक॑ रख लिया था; परन्तु चिदानन्दसे उसकी
कूर्की न हुईं । वह आफिसमें जाकर आफिसका काम नहीं करता था। आफि-
सके रजिष्टरोमि कविता लिखता था, जाफिसकी चिहिर्योमि ‹ शेक्सपियर ?
नामक किसी लेखकके वचन छिख रखता था और बिल-जुकोके पूर्ोपर चित्र
चनाया करता था । एक बार साहबने उससे माहबारी पे-बिल बनानेके छिए
कहा। चिदानन्दने बिल-बुकपर एक चित्र बनाकर तैयार कर दिया। उसका
भाव यह था कि बहुतसे मिछुक साहबसे भिक्षा मॉग रहे हैं और साहब
बहादुर उनके आगे दो-दो चार-चार पैसे फेंक रहे “ ! चित्रके नीचे लिखा
খা“ वास्तविक पे-बिल । ” साहबने इस अतिशय नूतन “पे-बिछ” को
देखकर चौबेजीको उसी दिन अपने यहाँसे बिना कुछ कहे-सुने बिदा कर
दिया!
बस, चिदानन्दकी घाकरीका अन्त हो गया । इसके बाद उसने ओर कों
नौकरी नी की । जरूरत भी नहीं थी । शादीके फन्देमे तो वह कभी कंवा
ही नहीं | जहॉँ वह रहता वहाँ यदि भरपेट भोजन और छोटा मर भंग
मिल गईं, तो फिर उसे ओर किसी चीजकी दरकार न थी । उसके रदहदनेका
हिकाना न था, जर्हौ-तर्हौ पडा रहता था । ऊुछ दिनि वष्ट मेरे घरपर भी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...