चौबे का चिट्ठा | Chobe Ka Chittha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chobe Ka Chittha by पं रूपनारायण पांडेय - Pt Roopnarayan Pandey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

Add Infomation About. Pt. Roopnarayan Pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चोबेजीका परिचय । संहते रोग चिदानन्दकछो पागरू कहते ये । उसंकी चित्तवृत्ति कुछ विल- क्षण प्रकारकी थी । उसकी बातचीत, कामकाज, रहन-सहन जादि सभी यातें अनोखी थीं। यह बात नहीं कि वह कुछ लिखा पठा नहीं था । उसे कुछ अंगरेजी ओर कुछ संस्कृत आती थी । किन्तु जिस विधासे अथोपा- जन न हो, वह विद्या किस कासकी ? उसे में विद्या ही नहीं कहता। चाहे कोई केसा ही मूर्ख क्‍यों न हो, भछे ही उसे लिखने पढ़नेके नाम केवल भपने दस्तखत करना ही घाता हो; किन्तु यदि उसकी साहब-सूबाओों तक पहुँच हो और उसे झठी-सच्ची बातें बनाकर अपना कास निकालना जाता हो, तो मेरी समझमें वह पण्डित है और चिदानन्द जैसा विद्वान्‌, जिसने बीसों पुस्तकें पद डालीं हों, बिलकुल मूल है । चिदानन्दको एक बार नौकरी मिल गईं थी। एक साहब बहादुरने उसकी जँगरेजी सुनकर अपने आफिसमे छूक॑ रख लिया था; परन्तु चिदानन्दसे उसकी कूर्की न हुईं । वह आफिसमें जाकर आफिसका काम नहीं करता था। आफि- सके रजिष्टरोमि कविता लिखता था, जाफिसकी चिहिर्योमि ‹ शेक्सपियर ? नामक किसी लेखकके वचन छिख रखता था और बिल-जुकोके पूर्ोपर चित्र चनाया करता था । एक बार साहबने उससे माहबारी पे-बिल बनानेके छिए कहा। चिदानन्दने बिल-बुकपर एक चित्र बनाकर तैयार कर दिया। उसका भाव यह था कि बहुतसे मिछुक साहबसे भिक्षा मॉग रहे हैं और साहब बहादुर उनके आगे दो-दो चार-चार पैसे फेंक रहे “ ! चित्रके नीचे लिखा খা“ वास्तविक पे-बिल । ” साहबने इस अतिशय नूतन “पे-बिछ” को देखकर चौबेजीको उसी दिन अपने यहाँसे बिना कुछ कहे-सुने बिदा कर दिया! बस, चिदानन्दकी घाकरीका अन्त हो गया । इसके बाद उसने ओर कों नौकरी नी की । जरूरत भी नहीं थी । शादीके फन्देमे तो वह कभी कंवा ही नहीं | जहॉँ वह रहता वहाँ यदि भरपेट भोजन और छोटा मर भंग मिल गईं, तो फिर उसे ओर किसी चीजकी दरकार न थी । उसके रदहदनेका हिकाना न था, जर्हौ-तर्हौ पडा रहता था । ऊुछ दिनि वष्ट मेरे घरपर भी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now