पुराण विमर्श | Purana Vimarsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सप्तम परिच्छेद पुराणों का वण्यं विषय २८९ नित्यरूप से सुष्टि तथा प्रलय होता ही रहता हैं। संसार के परिणासी पदायथं नदी-प्रवाह भौर दीपशिखा के समान प्रतिक्षण बदलते रहते है परन्तु यह परिवर्तन हृष्टिगोचर नहीं होता । भाकाश में तारे हर समय में चलते रहते है परन्तु उनकी गति स्पष्ट रूप से हप्टिगोचर नही होती । प्राणियों के परिवर्तन की भी यहीं दशा है । इस परिवर्तन का कारण भगवानु की स्वरूपभूता काल- शक्ति है जो बनादि है भर अनन्त है । उस शक्ति के कारण परिवर्तन क्षण- क्षण मे होता रहता है परन्तु वह इतना सुकष्म तथा दुर्बोध है कि वहूं मानव- बुद्धि से स्पष्टतः ग्राह्म नहीं होता । प्रतिक्षण जायमान इस विनाश को नित्य प्रलय के नाम के पुकारा जाता है । पौराणिक सृष्टि तथा प्रलय के विवेचन का यह संक्षिप्तरूप है । विस्तार के लिए पुराणों के तत्ततु प्रसज्ध देखना चाहिए । १९ ए० वि०




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