पुराण विमर्श | Purana Vimarsh
श्रेणी : इतिहास / History, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.48 MB
कुल पष्ठ :
675
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सप्तम परिच्छेद पुराणों का वण्यं विषय २८९ नित्यरूप से सुष्टि तथा प्रलय होता ही रहता हैं। संसार के परिणासी पदायथं नदी-प्रवाह भौर दीपशिखा के समान प्रतिक्षण बदलते रहते है परन्तु यह परिवर्तन हृष्टिगोचर नहीं होता । भाकाश में तारे हर समय में चलते रहते है परन्तु उनकी गति स्पष्ट रूप से हप्टिगोचर नही होती । प्राणियों के परिवर्तन की भी यहीं दशा है । इस परिवर्तन का कारण भगवानु की स्वरूपभूता काल- शक्ति है जो बनादि है भर अनन्त है । उस शक्ति के कारण परिवर्तन क्षण- क्षण मे होता रहता है परन्तु वह इतना सुकष्म तथा दुर्बोध है कि वहूं मानव- बुद्धि से स्पष्टतः ग्राह्म नहीं होता । प्रतिक्षण जायमान इस विनाश को नित्य प्रलय के नाम के पुकारा जाता है । पौराणिक सृष्टि तथा प्रलय के विवेचन का यह संक्षिप्तरूप है । विस्तार के लिए पुराणों के तत्ततु प्रसज्ध देखना चाहिए । १९ ए० वि०
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