आधुनिक भारत के निर्माता "आचार्य नरेन्द्र देव " | Adhunik Bharat Ke Nirmata (Acharya Narendra Dev)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 जाघाय॑ नरेन्द्रदेव साम्प्रदाग्रिक दंगे कहा जाने लगा। जीवन का साम्प्रदायिक रूप जिसमें सब मिलकर एक दूसरे का हित कर रहे हों, नष्ट हो गया। सौभाग्य से नरेंन्द्रदेव की बाल्यावस्था में इनके नगर फैजाबाद में साम्प्रदायिक जीवन नष्ट नही हुआ था। फैजाबाद के हिन्दू-सुसलमान एक ही सम्प्रदाय के रूप में रह रहे ये । उनके आपसी सम्बंध अच्छे थे । दोनो ही एक दूसरे के उत्सवों, पर्बों और त्यौहारों मे एक से होकर माग ले रहे थे। यहां तक कि बहुत से हिन्दू मुहरंम के अवसर पर ताजिया भी रखते थे ओर शिया मुसलमानों की तरह झबंत पिलाते थे। तब तक अवध के पृराते तवाबों द्वारा किया हुआ हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार अपना असर बनाए हुए था | अवध के पुराने नवाब हिन्दुओं कौ भावनाओों का बहुत आदर करते ये। हनुमातगढ़ी, जो पहले एक छोटा किला था, उन्होने ही एक साधु को दान में दिया था और मंदिर के रख-रखाब के लिए कई गांव भी दिए थे | बहुत से शिया परिवारों में गाय का गोदत इसलिए नही खाया जाता था कि उससे उनके हिन्दू पडोसियों की भावनाओं को ठेंस पहुच सकती थी । बालक नरेन्द्रदेव कै मन पर इस साम्प्रदायिक जीवन का, उसके शील तत्व का, पारस्परिक सामाजिक व्यवहा र का जबरदस्त प्रभाव पड़ा और उनके चरित्र मे यह क्षील विशेष आकर्षक तत्व के रूप में सदा प्रतिभासित होता रहा । उनके इस शील के कारण उन्हें अपने राजनीतिक जीवन मे कष्ट भी उठाना पड़ा, पर उसकी चर्चा यहां अप्रासागिक होगी। यहां यही कहना है कि नरेन्द्रदेव अपने बच्षपन्र के इस परिवेशजन्य प्रभाव के कारण आजीवन उस साम्प्रदायिकता से सदा दूर रहे जिसका बीजारोपण और प्रतार अंग्रेजों ने किया था। बचपन मे ही नरेन्द्रदेवजी अपने पिता की सामाजिक, घामिक और बौद्धिक प्रतिष्ठा के कारण कई सहान व्यक्तियों के स्रभ्पर्क में आए। प्रारम्भ में जिन व्यक्तियों से सम्पर्क हुआ, उन्तमे पं० माधवप्रसाद मिश्षा, स्वामी रामतीर्थं और सालवीयजो थे । स्वामी रामतीर्थ और मालवीयजी के नाम से तो देश के समी হিজিল परिचित हैं। माधवप्रसादजी उस दृष्टि से विज्यान व्यक्ति तो नहीं थे, पर अपने समय के समाज मे उनका एक्र विशेष स्थान था और नरेन्‍्द्र- देब के पिता से अत्यंत स्नेह के कारण फेजाबाद आने पर महीनों इनके ही धर रहा करते थे। उन्हें बंगला भाषा से विशेष प्रेम था और उन्होंने व॑ गला पुस्तक „देर कथा क हिन्दी अनुवाद भी किया था। बह राष्ट्रीय बिचारों के उदार




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