भूखों की बस्ती | Bhookhon Ki Basti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भूखों की बस्ती  - Bhookhon Ki Basti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिव नारायण शर्मा - Shiv Narayan Sharma

Add Infomation AboutShiv Narayan Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सब के सब उठ खड़े हुए। बहुत तो दौड़ भी पढ़े। भूख कीं ज्वाला में भनन की आशा ने चव जीवन ला दिया । वे जोर जोर से बातें करने लगे एक पर एक कदम बढ़ाने लगे--जलत्दी जत्दी जल्दी । सिर्फ पढ़ी रददी उसी पच्चास वर्ष के मनुष्य की लाश । और भी दो प्राणी पढ़े रहे एक बूढ़ी वह बोरे का-सा एक गंदा वख्र लपेटे हुए है उसीके सामने करोब पेंतोस वर्ष का एक मनुष्य फुट-पाथ पर हाथ पेर फेक भाँखे बन्द किये पड़ा है। बीच बीच में वद्द आँखें खोलता और जोर जोर से साँस ठे रहा है । जो अन्न के लोभ में दौड़ रहे थे उन्हीं में से एक आदमी ने फिर कर कहा-- अरे बुढ़िया तू नहीं चलेगी ? बूढ़ी ने सर भर दिला दिया । काहे ? बूढ़ी ने पढ़े हुए बे-वश को ओर अँगुली का संकेत कर दिया । क्या हुआ है ? थोड़ी देर चुप रद कर उसने फिर पूछा - वद्द तेरा कौन है ? बूढ़ी ने हँस कर कहा-- वह मेरा लड़का है दस महीने कोख में रखा है । चह दौड़ पड़ा--आगे बढ़ती भीड़ को लक्ष्य कर चल पड़ा । पाठिका | आकाश पर इन्द्र धनुष उदित हुआ है उसके सौन्दयंको तुम नहीं देखोगी १ खिड़कियाँ खोल दो । अबरक की नाई--रिमक्तिम बरसती चूदें पड़ रददी हैं । वाह दरीर अलसाया हुआ है न अँगड़ाई लो । खिड़की से पंथ के छोर पर दृष्टि ठिका दो । रेशम की तरह मुलायम केश हवा की भूखों की बस्ती १३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now