पिंजरा | Pinjara

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Pinjara by द्रोणवीर कोहली - Dronveer Kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सब बातें करने । कोई कहता भूत-प्रेत गाड़ियों को उड़ा कर शायद प्रेतलोक में ले गए हैं| कोई कुछ कहता कोई कुछ | सबके चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं । चारों तरफ घुप्प अंधेरा और घनघोर सन्नाटा था। किसी के पास कोई कपड़ा नहीं था। कड़ाके की सरदी थी और बचने का और उपाय न था। किसी के पास दियासलाई तक नहीं थी कि रोशनी करके देखें कि हम कहां खड़े हैं। हां रास्ते के दोनों तरफ घना जंगल था। ऊंचे छतनार पेड़ देवों की भांति सिर उठाए खड़े थे। देख-देख कर कलेजा मुंह को आता था। फिर किसी ने कहा यहां खड़ क्या देख रहे हो? आगे बढ़ो। राम भली करेंगे। इस पर सब लोग चल पड़े हालांकि कोई नहीं... है. जानता था कि कहां जा रहे हैं ? फिर ज्यों-ज्यां हम. हक




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