दीघ-निकाय | Digh Nkaya

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Digh Nkaya by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२1 ब्रह्मजाल-मुत्त [ दोष० ११ “पमिक्षुओ | यदि कोई भेरी, धर्मकी या सघवी निन्दा करे, ओर तुम (उससे) बुपित या सिन्र हो जाओगे, तो इसमें तुम्हारी ही हानि हैं। “मिक्षुओ ! यदि कोई मेरी, धर्मकी या सघकी निन्दा करे, तो वया तुम छोग (झट) कुपित और बिन्न हो जाओगे, और इसकी जाँच भी न करोगे कि उन छोगोके वहनेमे वया सच बात है और বা সুভ?” “भन्ते । एसा तही 1“ “प्िक्षुओ | यदि कोई० निन्दा करे, तो तुम छोगोकों सच और झूठ बातवा पूरा पता लगाना चाहिए--क्या यह ठोक नहीं है, यह असत्य है, यह बात हम लोगोमें नहीं है, यह बात हम लोगोमे बिलकुल नहीं है ? /प्‌प्रक्षुओ | और यदि कोई मेरी, धर्मकी या सघती प्रशसा करे, तो तुम छोगोको न आनन्दित, म॑ प्रश्न और न हर्पोत्फुल्क हो जाना चाहिए ।० यदि तुम छोग आनन्दित, प्रसन्न और हर्पोत्फुल्ल हो जाओगे, तो उसमे तुम्हारी ही हानि है । “भिक्षुभो । यदि दो प्रशतता ° कर, तो तुम लोगोबो सच गौर शूठ बातका पूरा पता छुगाना चाहिए--क्या यह बात ठीक है, यह बांत सत्य है, यह बात हम छोगोमे है और यथार्थमें हैं । १-बुड में साधारण बातें (?) श्रारम्मिक शील भिक्षुमो । यह शील तो वहुत छोटा और गौण है, जि्के कारण अनाछी छोग (--पृषगू जन) मेयो प्रशक्षा कसतेह्‌ं । भिक्षुओ ! वह छोटा और गौण शील कौनसा है, जिसके कारण अनाढी भेरी प्रासा करते है ?-- (वे ये है }--धमण गौ त म जीवदिसा (=ग्राण्णतिपात) को दो हिसार विरत रहता है 1 बहू दंड और शस्त्रकों त्यागकर छज्जावान, दयालु और सब जीवोका हिंद चाहनेवाना हं 1 #मप्निक्षुओं ' अथवा अताढ्ी मेरी शसा दस प्रकार करते हं-- रमण गौतन चोरी (= अदतादान ) को छोछकर चोरीसे विस्त रहता ह । बह क्सोसे दी गई चीजको ही स्वीकार करता है (+-दत्तादायी), किसीसे दी गई चीजहीकी अभिल्‍छापा करता है (-दत्तामिलापी), और इस तरह पवित्र आत्मावाला, होकर विहार करता है। ॥ “भिक्षु । अथवा अनाढी मेरी प्रशसा इस प्रकार करते हँ--ब्यभिचार छोछकर श्रमण गौतम निक्ृष्ट स्त्री-सभोगसे सर्वा विरत रहता है । <भिक्ुजो 1 अपवा०--मिथ्या-भापणकौ दोक श्रमण गौतम मिथ्या-भापणसे सदा विरत रहता है। बह सत्यवादी, मत्यत्रत, दृढवक्ता, विश्वास-पात्र और जैसो कहनी वैसी करनीवाला है। शिक्षम । अयवा०---चुगली करना छोछ श्रमण गौतम चुगी करनेसे विरत रहता है 1 फट डाल्नेंके लिए न इधरदी बाव उधर कहता है और न उधरवी बाद इधर , बल्कि पूटे हुए छोगोको मिकानेवालय, मिले हुए छोगोके मेलकों और भी दृढ़ करनेवालछा, एक्ता-प्रिय, एवसा-रत, एकतासे प्रसन्न होनेवाला और एवता स्थापित करनतेके लिये कहनेवाल़ा ই। लज्िक्षुओ | अथवा०--कठोर मापणकरो ভীত श्रमण गौवम बठोर भापणसे विरत रहता है 1 यह निर्दोष, मधुर, प्रेमपूर्ण, जेचतेवाला, जिप्ट और बहुजनप्रिय भाषण करनेवाला है । भियो 1 भयवा०--निररथव बानूनीपन्ै छोठ श्रमण गोतमं नरक वावनीपनते विस्त रहता है। बह समयोचित बोल्नेवाला, यथायंवक्ता, आवश्यवोचित यक्‍्ता, धर्म और विनयक्री वात बोहनेवाल्य तथा सारयुक्त वात बहनेवाला हैं




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