आचार्य मम्मट | Acharya Mammat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध ] আজাদ মগ্মত ग्रन्थ के रतयिता) राजानक रुव्यक” (अलक्ास्यवंम्ब के निर्माता) यजानन अमानव आदि] आचाये मम्मट वा जो কিল निदलंना' टीका में “राजानकबुलतिलव” के स्प में आया है उससे यह भी कहा जा सत्ता है कि সম্মত के कुल में ' राजानक” यह उपाधि परर्वेपरम्परा से चली आ रही थी । चतुर्थ उल्लास में शान्तरम के उदाहरण में “अहौ वा हारे बा द्य दि पद्म का देता, भी, जिसकी रचना काश्मीरदेशीय आचार अभिनवगुप्त के गुरु तवा प्रत्यभिज्ासूत्रादि ग्रल्यो वे रचयिता श्री उत्पलराज ने की दै, आचारं मम्मटः कामस होने में उप्रोहृबलक प्रमाण हो सकता है । निरुषादानसंमा, ব. দু, ণত শী वाइमीरी कवि नारायणमट्ट का है आचार्यं मम्मट का पाण्डित्य : श्री बामनाचार्य झलकीकर के अनुसार आचार्य मम्मट एक अनुपम पण्डित थे । इसी कारण वाव्यप्रकाश वो आकर ग्रन्थ माना जाता है | इसकी प्रामाणिक्ता के कारण वैयाकरण-सिद्धान्त-म ज्ूपा आदि ग्रन्थों में अपने क्थत की प्रामाणिक्त। सिद्ध करने के लिए इसे 'तदुकत काव्यप्रबागे/ इस प्रकार उद्धूत क्रियां गया है) सुप्रसिद्ध 'सुधासागरी” के टीकाकार भोमसेन त्तो मम्भठ को “बारदेबतावतार” कहते ह १ मोविन्दवक्ुर ने अपने 'काव्य-प्रदीप में बाव्यप्रकाशकक्‍ार पर शिथिलता” का आरोप किया था। उसका खण्डन भीससेन ने महान्‌ प्रयास से किया है और बाद में তন্হীন -- “বহমান गोचिन्दमटामहोषाध्यायानामीप्यमातरमवरिप्यते 1 न हि गीर्वाणगुरबोइपि श्रीयाग्देवत।रोषिनमाकषेषतुम्‌ प्रभवन्ति 1 इर्यादि द्वारा मष्ट केकथन को अफा्ट्स बतवाकर उनमें अपती श्रद्धा प्रगट की है । वाध्यप्रकाश की “ निदर्शना” टीका वे रचयिता श्री आनन्द कवि काब्मीर निवासी तथा शैव थे । थे अपनी टीझा के आर्म्म में लिखते है--इति दिवागमप्रमिद्धया पट्तिशत्तत्वदीक्षाक्षपितमयपटल प्रवर्ितमत्स्वहपश्चिदानन्दधत राजानवबु लतिलको मम्मटनामा दैशिक्वर इ 9 इन पंक्तियों स ज्ञात होता है वि आचार्य মানত शैव आगम दे ज्ञाता ही नही थे अपितु उस सम्प्रदाय” मे है दे, वा. पर. झ, पृ. १३२ तथा बण्टबोणविनिदिष्ट इ, पू ११९ | यह पद्च मी उलवराज वा है। २ देगा.प्रश,प््‌ ८। दे, गु मा, भूमित्रा, ए ६1 ४ द,गा, प्र झ भू, ए २७1 ৪৪




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