पतझर | Patjhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ॐ ০
धाराएं थीं जिनमें से कुछ यह मानते थे कि रीढ़ की हट्दी यानी मेरुदण्ड
के कालझुहर में एक आकाद होता है 1”
“जी ।” हरवंसलाल ने कहा, “क्या फरमाया आपने ? ”
“म आपका शुभ नाम पूछ सकता हूं ?” डॉक्टर ने कहा ।
“मुझे हरवंसलाल माथुर कहते हैं ।
“आपने हिन्दी पढ़ी है ? ”
“जी ? मेरा तो अब आके हिन्दी से पाला पड़ा है जब से यह आजादी
मिल गई है वरना अपने ज़माने में तो बच्चे जब घुरू में पढ़ा करते थे, जब
गणेशजी की पूजा करते थे तव अपने यहां तो मसतव हुआ करता था । घव
देखते हैं कि सब जगह श्रीगर्णेशाय नम: होने लगा है । वस हिन्दी तां प्रतनी
ही जानता हूं कि नाम लिख सक्ं | कायस्थों में तो आप जानते ही हैं। बसे
मैं तो काफी सीख चला हूं ।”
डॉक्टर सदसेना ने टोककर कहा, “सद कायस्थों में नहीं। बहुत-से
कायस्थों ने हिन्दी साहित्य में बहुत नाम कमाया है। रामकुमार वर्मा, महा-
देवी वर्मा, धीरेन्द्र वर्मा । खेर, इस वात को जाने दी जिए, मैं अपनी ब्रात कट
तो कुछ लोग कापालिक हुआ करते थे । कापालिकों की एक फिलॉसफी है |
तो वे लोग यह मानते थे कि घरीर में पांच तरह के अमृत होते हैं, मल, मूत्र,
वीर्य ०००7)
“जी 1!” हरबंसलाल ने फिर पूछा, “आपने क्या फरमाया ? किन
चीज़ों का नाम लिया आपने ? ”
“वयों नहीं समझेंगे आप ये सब चीजें ! आपके अन्दर ये मौजूद हे ।
वे लोग इनको अमृत कहा करते हैँ । वे लोग इनकी सिद्धि किया करते थें।
और वे लोग मानते थे कि घारीर में चक्र हुआ करते हैं। नाथयोगी भी
यह मानते हूँ कि दरीर में चक्र होते हैं ओर इन चक्रों में होकर कइलिनी
ऊपर चढ़ती हैं। आजकल के साइंटिस्टों में इंसान की चीराफाडी की
और उसके जिस्म को अन्दर से देखा तो यह सब मानते है कि शरीर में
गुद प्लेकसेस होते हैं। जिनको ये लोग प्लेक्सेस कहने है, उन्हीको योगी
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