तत्त्व-चिन्तामणि (भाग-१) | Tatav Chintamani Part I
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ज्वी दर्हमता
“०68०8
[दि सी श्रद्धा पुरुषके सामने লী वासविक दृष्टिसे
महापु रुषोंके द्वारा यह कहना नहीं बन
पड़ता कि हमको ज्ञान प्राप्त है? क्योंकि
इन शब्दोंसे श्ञानमें दोष आता है। वास्तवमें पूर्ण
श्रद्धाडुक लिये तो महापुरुषसे ऐसा प्रश्न ही
नहीं बनता कि “आप ज्ञानी हैं या नहीं” जहाँ
ऐसा प्रश्न किया जाता है वहाँ श्रद्धामें त्रुटि ही
समझनी चाहिये | और महापुरुषसे इस प्रकारका प्रश्न
करनेमें प्रश्वकर्ताकी कुछ हानि ही होती है | यदि
महापुरुष यो कह दे कि मेँ ज्ञानी नीं तो भी श्रद्धा घट
जाती है और यदि वह यह कह दे कि मैं शानी हूँ तो भी
उनके मुंहसे ऐसे शब्द सुनकर श्रद्धा कम हो जाती है।
वास्तवे तो मै अजनी हू या ज्ञानी इन दोनोंमेंसे
कोई-सी बात कहना भी महापुरुषके लिये नहीं बन
पडता, यदि वह अपनेको अज्ञानी कहै तो मिथ्यापनका
दोष आता है और ज्ञानी कहे तो नानात्वका | इसलिये
वह यह भी नहीं कहता कि मैं जह्मको जानता हैँ और
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