नवयुग की माँग | Navyug Ki Mang

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Navyug Ki Mang by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ नवयुग की माँग लालाजी ने देखा कि एक वच्चा गायव । परेशान होकर उन्होंने जेब से कागज निकालकर आँकड़ों को देखा और कहा: छेखा- जोखा थाहे । लड़का बड़ल काहे ? उसी तरह हमारे पंडितों के औसत आँकड़ों के चक्कर में देश का छोटा वच्चा डूब मर रहा है । दुर्भाग्य स इस देश में पचासी प्रतिशत छोटे बच्चे हे, जो भूख से तडप रहे हूँ, डूब रह है, मर रहे है । छालाजी का बच्चा इसलिए ड्वा था कि उन्होंने बुनियाद में ही गलती की थी । वह औसत हिसाब के फेर मे पड़ गय। अगर वे नदी की मझधार की गहराई को ही नापते और केवल छोटे बच्चे की >चाई को देखते तो उनका बच्चा न डूबता । वह नदी पार करने के लिए दूसरे उपाय खोजते ! उसी तरह देश वे. योजनाकारों ने देश की समस्याओं की मझथार को नहीं नापा और न ही छोटे बच्चें की शवित का अन्दाज लगाया। देश की समस्याओं की मझधार है पेट की समस्या और छोटे बच्चे को पास पेजी की शवित नहीं हैं, श्रम की धारित हैं । उनका विचार न करके समाजश्ञास्त्री नेताओं ने पुजीमूलवः बड्ी-यड़ी योजनाओं को उठा छिया, उन्हें विदेशी सन्दूक ये सहारे संयोजित किया और देशभर में फँली हुई जन- হাকিল या स्याद न कर एक बृहद्‌ नौकरथाही वा जाल विछाकर उसमे माध्यम से লুল में से निकाछ-निकाछकर गात बीटने छगे । फल्स्यसूप देश की जनता पूँजीवाद से शोपिंत और सोौफरदाही में पददलित होफर बरी तरह छटपटा रही




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