हिन्दू एकता का प्रतीक-ओंकार | Hindu Ekta Ka Pratik-Onkar

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Hindu Ekta Ka Pratik-Onkar by चमनलाल गौतम - Chamanlal Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ 1 [ हिन्दू एकता का अतीक-भोंकार थे, न व्यापार-ध्यवसाय में ही | विभिस्त प्रकार के यात्विक एवं विद्युतीय आविष्कार (इंजीनिर्यासम) आदि में भी हम किसी प्रकार से कम नहीं रहे । वरत्‌ हमारी यह विशेषता रहो कि हमारी समस्त भौतिक भव» इ्यताओं की पूर्ति क्षाध्यात्मितता के साथ होती थी। हमारा प्रत्येक व्यवहार धर्म के साथ जुड़ा था, मन्त्र शक्ति का अधिक सहारा लिया जाता ४ । आज भी उच्च धामिक घरातों में धर्म-कर्म, ब्रत-उपवासत एवं श्रेष्ठ भाचरण को ही प्रशंसित माना जाता है और किसी न किसी रूप में उन पुरानी प्रथाओं का पालन किया जात्ता है। यह बात भिन्न है कि अनेक प्रथाओं के रूप बदल गये और अनेक परम्पराए आधुनिक प्रभाव के कारण समाप्त प्रायः हो गईं | सात्तिक आाचरण-- युद्ध कला में पारंगत होते हुए भी हम सदा शान्ति-प्रिय रहे हैं। अपनी ओर में हमते कन्नी ऐसो चेष्टा नहों की कि किसी से अकारण ही झंभठ किया जाय । हमारी प्रवृत्ति अधिकांशत: सात्विक रही भीर जहाँ तक सम्भव हुआ सत्य के पालन में सर्देव तत्पर रहे । भेगस्थनीज ने हमारे आचरण पर प्रकाश डालते हुए लिखा था कि “हिन्दू लोग सदा शान्ति-प्रिय और हृढ़ विचार के तथा श्रेष्ठ खेती करने वाले हैँ । यह विलास से दूर रहने और सत्य वोलने में प्रसिद्ध रहे हैं। न्यायप्रिय होते के कारण पह ते कभी किसी न्यायालय में जाते हैं, न झूठ बोलते हैँ 1 चोरी करना तो जानते ही नहीं, इसलिये रात को चर के द्वार भी चनन्‍्द नहीं करते । कभी किसी हिन्दू ने मिथ्या भाषण नहीं किया । इस कारण अपने हक-हकूकों को लिखते नहीं 1!” मेगस्थनीज के उक्त भाव हिन्दुओं के सात्विक यावरण कौ पूर्णं हप से व्यक्त करते ह । उनका यह्‌ भौ कहना ই নি “দিক युद्ध के भवस्तर पर भी कन्नी खेती और वस्तियों को क्षत्ति नहीं पहुँचाते | दास प्रथा का




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