आचार्य हेमचन्द्र ओर उनका शब्दानुशासन : एक अध्ययन | A Critical Study Of Siddha Hema Sabdanusasana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
371
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){४1
उपयु सुप्र मं धद, यशोद, मूतदटि, भरमाचन्द्र, सिद्धसेन भौर
समन्तमद्र इन दुः वैया के नाम आये हैं। स्पष्ट है कि इनके ग्याङ्रण
सम्बन्धौ ग्रन्थ थे, पर आज वे उपलब्ध नहीं हैं ।
सैनेम्द क उपसिद्धसेनं वैयाकरणाः ( ५।४।४६ )--उदादस्ण से स्पष्ट दै
कि ये सिदसेन को सबसे दष्टा वैयाद्रण भौर उपसिदनन्दिन कदयः
( १४1१६) द्वारा सिंहनन्दी को बढ़ा कवि मानते हैं। पर आचार्य हेम ने
“त्कृट्टेडनूदेन! ( २२३९ ) सूत्र के उदादरणो मे 'अनुसिद्धसेनं कवयः”
द्वारा सिद्धसेन को सदसे थढ़ा कवि माना है। अतएव स्पष्ट है कि आचार्य
हेम के पूर्द कई जेन दैयाकरण हो चुके हैं। हेम की सदसे बरढ़ो विशेषता
यही है कि इन्होंने अपने पूर्दवर्ती समस्त व्याकरण प्रम्थों का अध्ययन कर
'उनसे ययेष्ट सामप्री ग्रहण की दे ।
हेम के पूव॑वर्ती भ्याकरणों में दिस्तार, काठिन्य एवं क्रमसंग या अनुदृत्ति
चाहुस्य ये तीन दोष पाये जाते हैं; हिन्तु आचाय॑ हेम उक्त सीनों दोषों से
मुक्त हैं। व्याकरण में विदद्चित विषय को कम सूत्रों में निदद करना सच्चा
समझा जाता है। अत्पवाकर्यो वाे प्रकरण पूर्व अल्पादरों वाले सूत्रों में
अतिपाद विषय को प्रकट किया जाय तो रचना सुन्दर और विस्तार दोष से
मुक्त समझी जाती है। हेम ने उक्त सिद्धान्त का पूर्णतः पालन किया है।
जिस प्रकार की दाब्दावली के अनुशासन के लिए जितने और जेसे सूत्रों की
आवश्यकता थी, इन्होंने वैसे और उतने ही सूत्रों का प्रणयन किया है।
एक सी सूत्र पेसा नहीं है, मिसका कार्य किसी दूसरे सूत्र से चलाया जा
सकता हो 1
सूत्रों एवं उनकी दृत्ति की रचना ऐसी शब्दावडो में नहीं होनी उादिए,
जिसकी ब्याद्या की आवश्यकता हो अथवा ब्यारुया टोने पर भी अर्थ विषयक
सम्देद यना रदे। अतः थेष्ठ प्न्थन-शे्ी वह्दी मानी जाती है, डिसके पढ़ने
के साथ ही दिपय का सम्पक् ज्ञान हो जाय और पाठक को सद्धिपयक तनिक
भी सन्देद्द उरपन्न न हो। सूत्रों की शब्दाइली उल्सी न हो कौर লগিন
मस्तिष्क उतनी ब्यास्याएं ही संमव है 1 आचार्य हेम सरठ और হয सैट
की कछा में अत्वन्व पढ़ हैं। स्याकरण छो साधारण छझानकारी रखनेदाला
भ्यक्ति मी इनके झब्दाजुशासन को डृदयंगम कर सकता है तथा संस्टृठ भाषा
के समस्त प्रमुख शब्दों के अनुशासन से अवगत दो सडता है 1
शब्दानुशासन ङी शी श दूसरा गुण यद है छि विश्वो स्पष्ट करने
के साथ सूत्रों का सुष्यवस्थित पु्व॒॑ घुसर्दद रहना भी आवश्यक है, जिससे
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