मध्यकालीन भारतीय कलाएँ एवं उनका विकास | Madhyakalina Bharatiya kalaen evem unka vikasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय चित्रकला की परम्परा अत्यन्त प्राचोन
है। चित्रकला संबंधी उल्लेख उपनिषदों में मिलते
हैं। बौद्ध ग्रत्ये विनयपिट्क में जो तीसरी-चौथी
शताब्दी ईसा पूव पाली मे लिखा मपा, राजा
प्रसेनजित के चित्रागार का वर्णान हैं। महाउम्मग
जातक में गंगा पर बने महाउम्मग महल
के चित्रों का उल्लेख है । महाभारत झौर
रामायण काल में भी महलों और मन्दिरों में चित्र
बनाए जाते थे | कौटिल्य भी चित्रकला से भलो-
भाँति परिचित वे और उन्होंने নল प्रयंशास्त्र में
विभिन्न चित्रविधियों का उल्लेख किया है। पुराणों
में ऐसी चित्र-विधाशों का विस्तृत वर्णन है।
विशेषकर विष्णु-बर्मोत्तर पुराण के चित्र-सूत्र में
तजञकला का विशद्ध विवेचत किया गया हैं। शिल्प-
शास्त्रों में वास्तुकला और प्रतिमाविज्ञान के साथ-
साथ ही चित्रकला का वर्णन किया जाता था ।
संस्कृत साहित्य में चित्रकला सम्बन्धी बड़े
रोचक उद्धरण मिलते हैं। कालिदास ने ग्रभिन्नानं-
शाकुन्तल, विक्रमोवशीयम, कुमास्सम्भव, मेघदूत
ग्रादि लगभग अपने सभी ग्रस्यों में चित्रशालाझों का
वर्णन किया है । बारा कौ कादम्बनी और हर्षचरित
के प्रत्येक महल में भित्ति-चित्रों से अलंकरण का
वणन मिलता दै-
“यालेख्य गृहैरिव वहुवर्णा चित्रपव शकुनिशत
संशोभित:
श्री हर के नैषघ-चारित में चित्रकला को यही
महत्त्व दिया गया है | भवभूति तीनों प्रकार के चित्रों
का वर्णनं करते हैं-पट्ठ, पट और कुब्य (भित्ति) ।
वास्तव में सौन्दर्यानुमूति के धैव में चित्रकला को
ল্য ছানা से জম মলা আদা শা
জিন্স हि सवं शिल्पानां मुखं लोकस्व च श्रियम् `
बात्सायन ते भ्रपने कामसूत्र में चित्रकला के छे:
भ्रृंगों का वरोन किया हैं ः--
মনল
प्रमाणम्
भाव
लावषण्य-्योंजनम्
सादृश्यम्
६. संणिका-भंग
चित्र-सिद्धान्तों के इस सूक्ष्म विवेचन से बह
स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारत में चित्रकला
फी ग्रत्यधिक प्रगति हो गई थी झ्ौर इस कला का
विधिवत् शस्त्रीयकरण हो गवा था। भारतीय
चित्रकार वतना अर्यात् प्रकाश ग्रौर छाया के सिद्धान्त
ते ओ भलौ भाँति परिचितं धा । इसका वर्णन धीं
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