भारतीय हिन्दु मानव और उसकी भावुकता | Bhartiya Hindu manava aur uski bhabukata

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Bhartiya Hindu manava aur uski bhabukata by मोतीलाल शर्मा भारद्वाज - Motilal Sharma Bhardwaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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০ াননীপাভ়াকে জান করা ই হী মানা বনানী 11; 'किसी/भामब म इनििवयुक्ता मनसस्य “को ' अस्थान्य + रहता: है।शेक्ष सन: (अआत्मान्वुद्धिप्शरोर) गैर লন” আন १४ पढिशाम यह-होता-हैःकि, भजै:पक्षपांती उस साभेव+का वाहमा) बुद्धि।; शरीर /उ्तीनों?। त्थ/ तीनों के लय पर : भनोष्यापार के ही? क्ोते दास'अनेरद्े তাকী आत्माुकंता নি বুক সিনা টহামীনা বগল ঘুরি; তাদী मानस चिन्ता में हीं? अपहुत+ रे हैत वन्दि মাম জারীর রিয়া দারা এম) का^ छविर्याःका इन्द्रो सः সহ होता है হল परत्यन्तानुभुति केस दाशं इनि सञसंलम्नःमन हन बा विष्यो का संसकाररपःसेः अलुमवा-किया करता दै । इस प्र र परम्पस्यय, मानसव्यापारः उसितकाह्म-“इन्क्र्येक प्रस्यक्ष जगत, से+सम्बद्धन्हे।: जोः प्रत्यक्तनमतू> ব্জানকাজ की अंनुवाभीम्यनी २हता'है। वत्तेमान - विषय ही अल्पेसे/विफ्य हैं? पत्र ये ही-मेनो व्यापार के: क्पपार हैं।, फेस! इक्तइन्द्रिययुक्त मंने की: बर्तममिकेक से भलीभांति सम्बन्धः सिद्धः होजाता दै॥ : इक अकार- आत्म-बुद्धिशरी स्पर्मिवः - इन्ह्रियः ये: मन के प्च्चाती सानव-फो अवश्य ही बत्तंमालकाल!नु भमी, सनः पे দানা না মারি রা है; शेप तीक़ों: (आक़ा>मरूतसरोरू+ मौस़ हके। रहते १ सः




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