समाजशास्त्र के सिद्धांत | Samaj Shastra Ke Siddhant
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.17 MB
कुल पष्ठ :
854
श्रेणी :
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डी. आर. सचदेव - D. R. Sachdev
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विद्या भूषण - Vidya Bhushan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समाजशास्त्र की परिभाषा एवं विपय-झेत्र ७ रस्ी समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं के सामान्य स्वर्पों प्रकपों एवं अनेक प्रकार के अन्त सम्बन्धों का सामान्य विज्ञान है । --पी० ए० सोरोकिन उजांर समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधित्व का विज्ञान है । ... --सुर्घोभ इदर समाजशास्त्र समग्र रूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन गौर व्याथ्या है। नर्गिडिग्स ट फ्त परिभापाओ कें अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि समाज- शास्त्र की परिभाषा के बारे में समाजशास्त्ियों ने विभिन्न दृष्टिकोण अपनाये हैं । वे दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं-- 1 समाजशास्त्र समाज का विशान है 1 0 समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का विज्ञान है । छा समाजशास्त्र समूहों में मातव-व्यवहार का अध्ययन है । ४ समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया का अध्ययन है १ समाजशास्त्र मानवीय सम्बन्धों के स्वरूपों का अध्ययन है । शं समाजशास्त्र सामाजिक समूहों अथवा सामाजिक व्यवस्था ४021 इक का गध्ययन है । इन सभी दृष्टिकोणों में यह विचार सामान्य रूप से निहित है कि समागशास्त्र का सम्बन्ध मानवीय सम्बन्धों से है। इसकी विधय-वस्तु व्यक्ति नही अपितु समाज है यधपि व्यक्ति को समाज के वर्णन में भुलाया नहीं जा सकता । २. समाजशास्त्र के विज्ञान का विकास एड 0 पी ईंलद्य्ड ० 50पं०1०89 0 समाजशास्त्र--एक अर्वाचीन विज्ञान 500ं0108ू#---4 धप्रंदा०८ 0 हा 0पंड्ांप --एक विज्ञान के रूप मे और विशेषतया भध्ययन के प्रथकू विपय के रूप में समाजशास्त्र का जन्म हाल ही में हुआ है। मेकाइवर 018८1४८7 के अनुसार विज्ञान-परिवार में प्रथक् नाम तथा स्थान सहित क्रमबद्ध ज्ञान को आय सुनिश्चित शाथा के रूप में समाजशास्त्र को शताब्दियों पुराना नहीं बल्कि वशाब्दियों पुराना माना जाना चाहिए । अधिक स्पष्टतया १५८३७ में फ्रांसीसी दार्शनिक व समाजशास्त्री बागस्त काम्टे &णण56 ०16 ने समाजशास्ल शब्द को जन्म दिया और समाजशास्त्र के विपय-क्षेत्र और इसके अध्ययन की प्रणाली निर्धारित की । इसी कारण काम्टे को समाजशास्त्र का जन्मदाता माना जाता है। उसने मानव-समाज की प्रकृति और उसके जन्म तथा विकास के नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज करने के लिए कठिन परिश्रम किया । उसने अपनी प्रमुख रचना विध्यात्मक दर्शनशास्त् ए०पा5 पड एफा1050एरप्ं८--०अंपंश्ट छधि।0505 में एक पृथक सामाजिक शास्त्र के निर्माण की आवश्यकता की ओर संकेत किया है जो सामार्जिक घटनाओं भ
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