सौन्दर्य शास्त्र के तत्व | Saundarya Shastra Ke Tatv

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Saundarya Shastra Ke Tatv by कुमार विमल - Kumar Vimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अभिव्यक्ति में श्रविनाभाव संबंध--अभिव्यवित की पूर्णता शौर अपुर्णोता से , ही सुन्दर और “कुरूप का निर्यय--क्रोचे के भ्रनुसार मनुष्य की चार वृत्तियाँ : वीक्षामुलक, तकंमुलक, व्यवहारात्मक और योगक्षेमपुलक--करोचे के सत की आलोचना--सहजज्ञान : अ्रन्तमुंख भावन और अ्रभिव्यक्ति : वहिर्मुख क्रिया--पअ्रभिव्यक्ति का गुण कलाकार की विशेषता--सहजज्ञान मे विचार- तत््व--सहजज्ञान की सभी अ्रभिव्यक्तियाँ अ्निवायंतः कलात्मक नही---नन्‍्द- तिक सहजज्ञान मे भी विचार-तत्त्व का समावेश--सामान्य सहजज्ञान भ्ौर कलात्मक (नन्दतिक) सहजज्ञान में अन्तर--जाक मारितं के विचार-सहन- ज्ञान मे प्रभाव और सवेदन--कोचे और काण्ट का सहजज्ञान अ्रभिव्यक्ति की पूर्णाता और सौन्दर्य--मौन्दयं के निरय मे बहुमत्त का प्रइत--पाइचात्य रूप- विघानवारियो के विचार-नेच-रचना की भिन्नता तथा शारीरिक परत्यर्थता के श्रन्तर की उपेक्ना--व्पक्तिगत सचि-संस्कारो श्रौर भरासगो की उपेक्षा- डने- मिक सिमेट्री' का सिद्धान्त--समानुभूति का सिदान्त,इस सिद्धान्त की भ्रालोचना-- तटस्थ भावना का सिद्धान्त-तटस्थता का प्रयोजन--तरस्थता : एक भ्रांशिक प्रनासक्ति--तटस्थता का सिद्धान्त और भारतीय काव्यशास्त्र--- प्रायो गिक सौन्दर्य शास्त्र की सीमाये और उपलब्धिया--सौन्दर्यं-बोध और द्रप्टा की रुचि---सौन्दय्ये- भ्रौर प्रत्यथता की प्रणाली--मावात्मक स्वेग श्रौर अभावात्मक सवेग---भावा- त्मक (पाजिदटिव) सवेग श्रौर सौन्द्यानुभूति--सौन्दयं-मावना और चेता नाडी- सस्थान---प्रायोगिक सौन्दयंग्रास्त्र और जीवविज्ञान--सौन्दर्य-भावन श्रौर नेत्र-मस्तिष्कफ-मबध--मानवेत र प्राणियों मे सौन्दर्य-चेतना--सौन्दर्य-चेतना : एक सामाजिक सस्कार-बहुकोपी प्रारियो मे सौन्दर्यप्रियता - चाल्सं डाविन का मन्तव्य--सौन्दयं के प्रत्ति भारतीय हृष्टिकोश--सौन्दर्य और श्रानन्द-- सौन्दयं -प्रतीति मे सात সন্ধা के विघून--वीत-विधूना प्रतीति श्रौर श्राचार्ये शुवल की अन्तस्पता की तदाकार परिणति मौन्द्यानुभूति ग्रौर विकलता ; कालिदास तया ररस्टल की हृष्टि--प्राकृतिनेय सौन्दर्य और सार्वकालिक मनोज्ञता--भारतीय सीन्‍्दर्य-चिन्तन में श्रत्याथुनिक पाइ्चात्य विचारणाओं के भी ज--दासगुप्त का मन्तव्य--भारतीय सौन्दर्य-चेतदा शौर আানিক সায় --भारतीय दृष्टि और श्रन्तरग सौन्दयं--शाकर अ्रद्ध॑ध॑दाद और सौन्दयं-- सोन्दर्यानुभूति शोर सप्रजात स्रमाधि--सौन्दर्याभिव्यक्ति और श्रस्मितायोग--.. मोन्दथे-योव श्रीर ऋतम्भरा प्रजा--मारतीय कला मे रहस्यमय मौन्द्यं - सौन्दर्य-विवेचन में 'कुरूप' का सौन्द्रयं-चेनना से उवध--सौन्दर्य-बोध श्रौर उदात्त-मावन--उदात्त-भावन मे घात भौर श्राद्धादन--उदात्तमे विज्ञालता झौर लोकातिशयता--उदान में भ्राकृति-विधान का देकन्पिक महत्त्व-- प्रात्म- निष्ठता शौर मानस-चाप की अधिकंत्ता---उदात्त . सौन्दर्य का विस्तार-उदात्त




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