रवीन्द्र - साहित्य भाग - 13 | Ravindra Sahity Bhag - 13
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कणे-कुन्ती-संवाद् : कान्य
आज इस रजनीके तिमिर ~ पलक धर
तारके प्रकाशमें प्रत्यक्ष होता छगोचर्
मुझे घोर युद्धफल । इस स्तब्ध शब्दहीन
ज्ञणमें अनन्त नीलाकाशसे विचारलीन
मनमें प्रवेश मेरे कर रहा एक क्षीण
जयहीन चेष्टाका संगीत, एक आशाहीन
कर्मोद्रम-राग । सुमे स्पष्ट आज दीख रहा
शान्तिमय शल्य परिणाम । मानो मेरा कटा,
दार जिस प्तक दै धरी, आज तोड़ नाता
त्याग दूँ में उसे, ऐसी आज्ञा मत देना माता ।
जयी हां, राजा हो, पायें पाण्डव-सन्तान मान,
निष्फल हताश दल्वारछोमि दै मेरा स्थान)
जन्म-राजिको ही मुझे! फेंक दिया (थ्वीपर,
माता, मुझे नाम-हीन-ग्रह-हीन दीव कर।
ममता-विहीन होके आज भी उसी प्रकार
रहने दो, दीप्ि-हीन, कीर्ति-हीन, अनुदार
गतेमें पराभवके छोड़ मुझे अविषाद।
मुझे! बस देती जाओ आज यही आशीर्वादि---
जय-लोभ, यशोलोभ, राज्य-लोभ हेतु कहीं
बौरकी सद्रतिषि, है माता, भ्रष्ट होऊँ नहीं ।
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