आतमसंघर्ष की कविता और मुक्तिबोध | Aatm Sangharsha Ki Kavita Aur Muktibodh
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.16 MB
कुल पष्ठ :
213
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ हंसराज त्रिपाठी - Dr. Hansraj Tripathy
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सयंक्षि प्त जीवन-रखा विराट शन्य गजासन माधव मुक्तिबोध का जन्म महाराष्ट्रीय कु्तकर्णी ब्राह्मण परिवार में १३ नवम्बर १९४५७ ई० को क्योपुर जिला ग्वालियर में हुआ था । यहाँ इनके पिता श्री मावव सुक्तिबोध पुलिस इंसपेक्टर पद पर मियक्त थे। मुक्तिबोघ इनकी वंदी- बरुम्परा में बला आता उपनाम है जो किक्षी पूर्वज द्वारा लिखें गये इसी सास के प्रंथ के कारण जुड़ा है । बालक गजानन का आरम्भिक जीवन बड़े सुख विलासिता और लाड़-प्यार में बीता था पिता श्री माघव मुक्तिबोघ तथा माता श्रीमदी पार्वती बाई की पहले की दो सल्तानों के जीवित न रह पाने के उपरान्त तीसरी सन्ताव रूप में पु का जन्म विशेष प्रसन्नता का सुचक था और इस सन्तान के प्रति अतिरिक्त बात्सत्य भी स्वाभाविक ही था 1? उन दिनों मध्य प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में नियुक्त इंसपेक्टर अपने क्षेत्र के राजा की तरह दबदने वाला सम्माभित व्यक्ति होता था। चुलिस अधिकारी के रूप में रोबीले दबंग सिद्धान्त-प्रिय एवं घ्मं भीर पिता तथा ईस्ागढ़ बुन्देल खण्ड के उच्चदर्गीय ब्राह्मण कुषक परिवार में जन्मी माता के प्रुजा-पारु शिक्षा दीक्षा एवं आराधना का प्रभाव कुलीन संस्कार रूप में बालक जुक्तिबोभ पर पड़ा । इनके पितामह्द श्री गोपाल राव मी पुलिस विभाग में दफादार थे जिन्होंते अपने पुत्र को भी उसी विभाग में सेवानकार्य के लिए प्रेरित किया होगा । कड़ियल स्वभाव सिद्धान्दश्रियता तथा गम्भीरता इन्हें फ्ता एवं प्तिमह से सिली थी जो ड्न्हू विदोष स्नेह देते थे 1 आस्था पैंय दिश्वास माता के संस्कार से एवं बुआ अत्ताबाई के अनुशासन एवं बन्घन की प्रतिक्रिया रूप में गोपनीयता एकाकीपल और अपराध- बोध जैसी मावना सतत संघर्षक्षील जुकारू एवं जिद्दी व्यक्तित्व निमित करने वाली परिस्थितियों में प्रमुख हैं 1 बैशवावस्था की सुविधायें तथा उसके विपरीत पिता के अवकाश ग्रहण करते ही आधथिक विपन्नता का संत दबाव एवं अभावग्रस्तता ने सुक्तिबोध के किशोर मन में आत्मसंघर्ष का रूप लिया । इनकी माता पार्वती वाई उस समय की कक्षा ६ उत्तीर्ण थीं जो मुन््ी प्रेमचव्द की कहानियाँ उपन्यास तथा हरिनारायण आप्टे की कृतियों का मध्ययन विद्येप रूप से करती थीं । उच्चवर्गीम बह्वाण परिवार के सगरीय जौवन से जुड़कद अपने पिता के घर के ग्रामीण संस्कार को पार्वती बाई ने पुर्णतः भूना दिया था १. सुक्तिबीध सं० लकमणदत्त गौतम शरद माधव युक्तिलोध का लिवस्धनाा
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