विवेकानंद ग्रंथावली ज्ञान योग खंड 1 | Vivekananda Granthavali Gyan Yoga Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ 33
यह दूसरा शरीर तभी तक बना रहता था जब तक कि बस
पले व शरीर से कोई छेड़छाड़ न को जावी थी। और हम देखते
हैं कि यही कास्थ था कि मिसवाले मृतक शरीर के ज्यों
कालो बने रहने के लिये इतना अधिक प्रयास करते थे। यही
कारण है कि उन लोगों ने अपने खुर्दो को रखने के लिये इतने इतने
बड़े पिरामिड बनाए थे। कारण यह था कि उतकी धारणा थी
कि यदि इस शरीर का कोई झंग-मंग दो जाबगा ते दूसरे
शरीर का भी अंग-भंग अवश्य हो जायगा। यह स्पष्ट रूप में
पिलर-पूजा है। बाविल्नवालों में भी वह्दी दुहरे शरीर का सिद्धांत
मिलता है, पर इसमें थोड़ा सा झंतर वा । हुहरे शरीर में प्रेस के
कोई भाव नहीं रह जाते थे; बह जीवितों को पिंडा-पानी देने के
खिये और अनेक प्रकार से इसे सहायता देने के खिये आस
दिखाया करता था, यहाँ तक कि उसे अपने लड़के-बाल़ों और
अपनी खो तक से किसी प्रकार का स्नेह नहीं रह जावा था।
आ्चीन डिंदुओं में भो हमें इस पितर-पूजा के चिन्ह मिलते द !
चौनियों में भी उनके धर्म का आधार पितर-पूज़ा ही कही जासकती
है। यही मय तक उस बड़े देश की लंबाई चैड़ाई में व्याप्त दे रही
है। इसमें संदेह नहीं कि यह पितर-पूजा दी फा केला धर्म है
जिसका प्रचार चोन देश में सचसुच माना जा सकता है।इस
प्रकार यह जान पृ है कि पक भार उन लोलो क सिद्धांत के
कये, जिनका यह पड है कि धर्म का ध्रारंभ पितर-पूजा से हुआ.
है, एक बहुत भ्रच्छा झाधार उपस्थित है।
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