मेरे कामकाजी जीवन के संस्मरण | Mere Kamakaji Jeevan Ke Sansmaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.46 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सरकारी रु
की विभागीय परीक्षा तया जिले की बन सरादीय में “मोखिन-तमा (लिट्वि
परीक्षा पास करें । इनको पास किये विना कि नि परभिरी घुक
थी और न ही पदोन्नति हो सकती थी। इन परीक्षाओं क॑ केलिए
आदद्यक अनुभव और व्यादहरिक ज्ञानःसंचय करने में एक नये अधिकारी को
प्राय: दो-तीन वर्ष लग जाते थे। भाषा की परीक्षा पास करना मेरे लिए कोई
मुश्किल वात न थी, फिंतु मुझे सदेह था कि मैं व्यावहारिक इजीनियर्टिंग की
परीक्षा में सफलता पूर्वक पास हो सझूगा या नहीं । यह तो सत्य है कि
इजीनिर्यारिंग की व्यावहारिक परीक्षा में बैठने का सुझाव दे कर एवज़ीक्यूटिव
इंजीनियर ने मेरे प्रति वढ़ी उदारता ओर सहददयता का परिचय दिया था । मैंने
उन्हें लिखा कि संमवतः व्यावहारिक परीक्षा पास करने के लिए मुझे अभी पर्याप्त
अनुभव नहीं है, इसलिए मैंने प्रार्थना-पत्र नहीं भेजा था। उन्होंने मुझे डांटते हुए
लिखा कि युवावस्था में ही इम प्रकार का मिराशावादी दूष्टिकोण अपनाना शोभा
नहीं देता । फलत. मैने परीक्षा के लिए प्रार्थना-पत्र भेज दिया । तीन इंजीनियरों
की एक परीक्षा-समिति, नियुक्त की गयी, जिसमे मेरे मुख्य अधिकारी भी
थे। समिति ने मुझे पास कर दिया और न केवल मेरी मौकरी पवकी हो गयी,
चल्कि मुझें द्वितीय श्रेणी का सहायक इजीनियर भी बना दिया गया। इस प्रकार
बीस माह के अन्दर उन्नति करते हुए मैं प्रथम श्रेणी में पहुंच गया; जिसके परिणाम-
स्वरुप मुझे ५०० रुपये मासिक वेतन मिलने लगा।
जिला ल्ानदेश में मलेरिया का प्रकोप होने के कारण मेरा स्वास्व्य खराब
रहने लगा और मैंने स्यान-परिवर्तन के लिए लिसा। केन्द्रीय डिवीज़न के चीफ
इंजीनियर ने मेरी बदली छूना में, दूना डिले के एक्डीकयूटिव इंजीनियर (सड़क
व भवन निर्माण) के अधीन कर दी। अब तक मेरा संवथ सिंचाई और जल-
मप्लाई के कामी से रहा था। चदली होने पर मुझे सिविल इजीनियरिंग की एक
नयी थासा का अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला । कुछ समय के लिए मुझे
गणेशसिण्ड (पूना) में स्थित “गवर्नमेट हाऊंस' की देख-भाल का कार्य सौपा गया ।
यहा प्रान्तीय सरवार का प्रधान कार्योलय था । इसके अतिरिक्त दूसरे निर्माण-
कार्षे: जिनमें नगर के आस-पास बनने दाली सड़कों का काम भी शामिल था, मेरे
जिम्मे थे । यहा पूना के एक्डीक्यूटिव इंजीनियर ने भी मुझे हर तरह से परसा
और मुझे छगा कि भरे बारे में उनकी अच्छी राय बन गयी हूँ।
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