ज्ञानार्णव प्रवचन भाग - 5 | Gyanarnav Pravachan Bhag - 5

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Gyanarnav Pravachan Bhag - 5 by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घाथा २५१ १९ ह, मरते समयतो देख लं । भनेको तो यो मोदको दी लिर मर। फस्ते द । शर्‌ कितना दु ख होता दोगा उस मरने वालेकों जिसके मोहसाव लगा ই मरते समय | तो मरणका दु.ख उनके है जिनके मोह लगा ६, ह्य्‌ यद्‌ घर छूट जायगा, इतता भ्रम किया थह सच व्यथ जा रहा है | यों जिसे किसी भी प्रकारका मोह हो मरणफे समयमें उसे ही क्लेश उत्पन्त होगा। जो जीय निर्मोह है उसका क्या । मेरा तो यह में हूं, जब भी शरीरसे विदा दोऊँगा तो यद्द में पुरा का ही पूरा अपने आपके स्वरूपको लिए विदा होऊंगा | वो यह संसार ओर यह मोक्ष ये दोनों प्रतिपक्षी हैं। ससार तो दुःखमय है और मोक्ष आनन्द्मय है। संसारमें आननन्‍्दकी कोई सलफ नहीं है और सोक्षमं उत्केशका श्रश भा नहीं है । तो रस मोक्षके लिए पुरुपार्थ करें, यह पुरुषाथ हैं ध्यानका | इन वाह्मपदार्थांमें हित नहीं है ऐसा ध्यान न जगे तो अपने आपको जानूँ, मानू) अपने आपमें रत हों ठेसा ध्यान चने तो यही है सत्य पुरुषार्थ | मोक्षके सम्बन्धभे और भी হান फरते है । इग्बीयादिगुणोपेतं जन्मक्लेश: परिच्युतम्‌ । चिदान्दमय साक्षान्मोक्षमात्यन्तिकं विदुः ॥२५१॥ भोमस्वरूष--मोक्ष उसे कष्टते है অহী घनन्त दशन, भनन्त ज्ञान, झतन्त शक्ति, अनन्त आनन्द प्रकट होता है| मोक्षमार्गका सीघा #र्थ तो हैं छुटकारा मिलना । | इस जीवको जब फर्मोसे छुटकारा मिलता है, देहसे जुटकारा मिलता है तो उस समय इस जीवकी कया स्थिति रद्दती है, उस स्थितका অলালা भी सोक्षका स्वरूप चत्ताना है | तब स्थिति यह रहती है कि इस जीवका ज्ञान अनन्त द्वोता है। इतना विशाल ज्ञान सीमारद्दित षान तीन सोफे शौर यलोक्मे जो कुछ भी है, तीन लोकमें चनन्तद्रव्य ह, सौर लोकफे वार कवलत एक प्राफाशष्टी ह्‌ । उप्त समस्तफाजो भी सत्‌ ्ो स्पे तको जान लेना यह अनन्त ज्ञानका काम है । और फिर यह धान इसलिए भी नन्त है कि भविष्यमे कप्ती भी इसका अन्त नहीं होता । प्रकट তুলা লী ভুগ্সা। ऐसे पत्रल ज्ञानकी शुद्ध अवस्था जहाँ प्रकट हो उसका नाम मोक्ष है । पररनेहफे घन्धमसे मुक्तिमें भताकुलता-यहाँ जो मिला है क्रिसीका भरासों नहों कि ऋच तक र६रेगा » खेरकी चात तो यह है कि मिट जायगा किए नी उसी प्रम । का लार नहीं है फिर भी उमसतीसे मोद छोड़ दे सोह तो छुछ उद्धार ( मगर उसे छोड़ा नहीं जाता । दुःखी भी होता जाता झौर छोड़ा भी नहीं ज्ञाता | जैसे जिस घरमें परस्परमें फलह मी मयी हो और




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