जैनेन्द्र के विचार | Jainendra Ke Vichar

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Jainendra Ke Vichar by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० मनोविशानिकके लिए जो बातें पहेली बन प्रस्तुत दोती हैं, उन्हें जैनेन्द्र जैसे कलाकार किस सहजताके साथ सुलझा डालते हैं, इसके प्रमाण-रूप कई लेख इस संग्रदर्म है | एक लेखनुधा कद्ानी, कहानी नहीं, * द्वी ले लें । स्वयं कथने ( =ो{010101९ >) स्प अमीरफे मनका चोर किस मचेसे पकदा गया रै ! जनेन जर्दौ आलोचक दोकर प्रस्त देते ह, वदो भी ध्यान देनेकी बात यह रै फि वे अपने्ैके कठाकारको नरी खेति । प्रेमचन्दजीक्री कला, ‹ रामकथा, अथवा नेदरूजीके आत्मचरितपर लिखे गये लेख इसी कलात्मक आलोचना शैलीके मनोदर प्रमाण हैं| वस्तुतः आल्मेचनाका आदर भी वही है जहाँ आलोचक मनके रसको नहीं खो देता, जद्दोँ बह एकन-मात्र बुद्धिवादी बनकर विशलेपणको ही प्रधान ओर अन्तिम कर्तव्य नदीं मान बैठता । आञेचनाभ भी स्यौ न आत्म-स्स-दान दी प्रधान ह ! इसी विचारको नेन्न अपनी प्रमुख दृषटि मानकर सदा सामने सक्या ६ । ( ४९-६४ ) ऊपर जो कटा गया दै कि जैनेन्द्र निरी बुद्धिसि अधिक सर्वयक्षी-भाव-मृमिकोा अपनाते हूँ, उसका अर्थ विवेकशासित भावनाओंकि अथर्भ लेना अधिक युक्त होगा { क्योकि वेधी निरी भावनाके शिकार बननेमें वे सुख नहीं लेत, वह ते पुनः एक अन्धस्थिति है। परन्तु प्रेमकी भावनाकी या कहो सर्मव्यापी सद्दानुभूतिको ही जैनेद्धन जैसे अपने भीतर रमा लिया है। इसीसे वे उस उन्नत शालीनताके साथ अश्लील्ताके भौतिक प्रश्नको दूत दीखते हैँ ( ५० ४२ ) कि जिससे दुश्वरित्रा ठहराई हुई और यहूदियोंद्वारा पत्थर फेंफकर सताई गई स्रीपर इंसाक्रे कदणा-द्धवित हनेकी, मदरातमें वेश्याअंकि सम्मुख गॉधीजीद्वारा दिये गंध करुणा-राजित ममतापूण भाषणकी, अथवा बुद्ध ओर सुजाताकी कथायें आंखाके सामने आ खड़ी होती हँ। सच्चा कलाह्ार इसी अन्तिम सत्यकी' अव्यीकिक भूमिपर खड़े होकर, लोकिक सुन्दर-अमुन्द्रके भद-अन्तरके। आँखेोंकि सामने बिलमते-बुझते देखता है | अरे, सत्यकी महादशिनी आँखीके आगे ये मेंद-माव कहें बचे रहते हैं | दुर्बचछ मानव-मन-निर्मित मूल्य-मेंद जहाँ जाकर, एकमेक हो जाते है उसीको आध्यात्मिक या आधिदेविक दृष्टिकोण कहते हैं । आधिमोतिक आचार या नीति-अनीतिके रूढ़ बंधनोंकी कॉमत कूतनेवालि शास्त्र (“एथिक्स ) की समस्‍यायें भी इसी तरह जैनेन्द्रके लिए बहुत कम कठिन रद जाती हैं। जैनेन्द्र क्या, प्रत्येक सुबुद्ध छेखक अपनी काल-परिध्थितिकी




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