जैन कथा साहित्य : विविध रूपों में | Jain Katha Sahitya : Vividh Rupo Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथाओं मे धर्मकथा को सर्वप्रथम स्थान दिया गया हे । यह कथा स्निग्ध, मधुर, हदयस्पर्शी, आह्वादकारी ओर पथ्यस्वरूप होनी चाहिए । धर्मकथा चार प्रकार की बतायी गयी है : आक्षेपणी (मनोनुकूल विचित्र और अपूर्व अर्थवाली), विक्षेपिणी (अनुकूल प्रतीत होने वाली, अनीत्िपरक कथाओ से मन को हटाकर प्रतिकूल लगने वाली, नीतिपरक कथाओ कौ ओर प्रेरित करम वाली), सवेग-जननो (संवेग अर्थात्‌ बोध पैदा करसे खाली) ओर मिर्वेद-जननो (वराग्य पैदा करने वाली) ।' धर्म का अर्थ है न्याय, नीति, सदाचरण । धर्मकथा अर्थात्‌ नीतिपरक कथा जो समाज को न्याय एव नीति की ओर प्रेरित करे । सत्कर्म में प्रवृत और असत्कर्म से निवृत्त, यही धर्म-देशना का लक्ष्य रहा है । हम अपने दुख के समान ही दूसरों के दुख का अनुभव करे, सवके परति मेत्री भावना का उदय हो, गुणीजनो को देखकर मन प्रमुदित हो, दीन-दुखियो के प्रति करुणा भाव जागृत हो आर विपरीत मनोवृत्ति वाले जनौ के प्रत्ति मध्यस्य भाव आन्दोलित हे, यही धार्मिक कथा-कहानियो का उदेश्य रहा है । इसी उदेश्य को ध्यान भे रखते हए दान, शोल, तप अर सद्भाव का प्रतिपादन कस्ते हुए संयम, तप, त्याग और वैराग्य पर जोर दिया गया ই । दिगम्बर ओर श्ैताम्वर्‌ दोनो ही संप्रदायो के विद्वानों ने धर्म कथानकों मे विविधे दृष्टान्तो, उदाहरणो, पको. मनोरंजक सवाद, धूर्तो के आख्यानो, पशु-पक्षियो की कहानियों, सुभाषितों और उक्तियो आदि का समावेश कर कथा-साहित्य को खव हो समृद्ध बनाया हैं | ईसवी सन्‌ की आठवी शताब्दी के विद्वान्‌ कुवलयमाला के रचयिता उद्योतन सूरि ने अपनी कथा की नववधू से तुलना करते हुए, उसे अलकार सहित, सुभग, ललित पदावलि से विभूषित, मृदु और मंजुल संलापों से युक्त, सहदय जनों के मन में हपोल्लास उत्पन्न करने वाली कहा है ।' जैन विद्वानों ने केवल प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश में ही लोकोपयोगी कथा-साहित्य की रचना नहीं को, अपितु पुरानी हिन्दो, पुरानी गुजराती, राजस्थानी, त्तथा कन्नढ़ और तमिल भाषाओं के भंडार १- भगवतों आराधना पृ ६६५२-५७ २-५ सालंकाला सुहया ललियपया मठय-मंजुरःसंलाया 1 सहियाण देइ हरिसे उच्यूद्ा णबवहु বিন भ




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