उषाकाल -2 | Ushakal -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 -उशाकाट हैं कि, किवाडोंकी दराज़में कोई सफफ़ द्सी चीज़ अटकी है। उसको निकालकर देखा, तो वह एक कागाज्ञका टुकड़ा दिखाई दिया ! उसको उन्होंने अपने साथ लेलिया;, ओर दीपकके उजेलेमें देखा । “आज आधी रातके बाद, जब खब लोग सो जायँ, आप इस हवेलीके उत्तरकी ओर, बरगदकी पांतके पास आवदे”---बस, इतने ही अक्षर उसमें लिखे थे। अक्षर बहुत जब्दी जद्दी बेसे ही घसीटसे दिये गये थे। उसको पढ़कर नाना साहब बहुत ही चकराये। नीचे किसीका हस्ताक्षर भी नहीं था। ओर न यही प्रकट किया था कि, हम कोौठद हैं, किस लिए आपको चुलाते हैं, इत्यादू । अतणव नामपसाहब अब इस 1, विदारमें पड़े कि, शायद्‌ यह उसीका बुलावा आया हो कि? जिसने हमको मिलनेका वचन दिया था। फिर उन्होंने यह : सोचा कि,ऐसा न हो,जो कोई धोखा देकर हमको वहां बुलाता ` | रे हो; और फिर वहांखे पकड़ ठेजाय । आज्ञ तीन दिनसे म , - बस्तीमें घूमते तो रहे ही हैं, सो शायद्‌ किसीने पहचान लिया हो, अथवा दरवारमें जाकर ख़बर ही देदी हो, अथवा ख़बर भी न दी हो; ओर यों ही पकड़ लेजाकर हमको कहीं बन्द -, कर दे! इसका क्या ठीक है! इस तरह नाना प्रकारके कुतक नानासाहबके मनमें आने लगे। इतनेमें उनको अपने पीछे किसीके आनेका भास हुआ। मुड़कर देखते हैं, को यही, उनके साथी, जो बस्तीमें घूमने गये थे। अब एक क्षणसरफे लिए * * & १४ 6 ५ | ५. ही उनके मनमें यह विचाट आया कि, हमारे पास जो | यहं




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