आचर्य हजारी प्रसाद द्विवेदी | Aacharya Hajaree Prasad Dwivedi

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Aacharya Hajaree Prasad Dwivedi by त्रिभुवन सिंह - Tribhuvan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। आचायें हजारीप्रसाद द्विवेदी [1 ও वैभव दिल्‍ली के तठ से ह्विवेदीजी को बृखा रहा था ओर वे गंगातट छोड़कर एकाकी यमुना तंठपर चले गये । इसी काशी नगरी सें मु ० प्रमचन्द, बाबू जयशकर प्रसाद और आचार्य रामचन्द्र शुक्ठ का निधन हुआ और उन्हें लगभग एकाकी ही गंगातठ पर जाना पड़ा। अतः इस परम्परा की अगली कड़ी न बनकर द्विवेदीजी ने अच्छा किया । दिल्‍ली ने सम्राटों और राजनेताओं का ही वैभव देखा था, उसने यह कभी नहीं देखा था. कि एक कलम का सिपाही भी अपनी कीति से लोगों को पीछे छोड़ सकता है । दिल्ली मुकुटवालों की रही है पर दिल्‍ली में अपनी मृत्यु से द्विवेदीजीने उसके मुकुट मेँ एक नगीना जड़ा है। लोगों को पहली बार इसका अनुभव हुआ कि द्विवेदीजी ने अपने साहित्यिक जीवन के द्वारा ही नहीं बल्कि मृत्यु के माध्यम से भी हिन्दी को राष्ट्रीय गरिमा प्रदान की है। मृत्यु के बाद भी जो छोग द्विवेदीजी के इस यश को नहीं झेल पाते, उन्हें कम से कम हिन्दी के नाम पर तो मु ह नहीं खोलना चाहिए। उन्हें इस बात से ही सन्‍्तोष कर लेना चाहिए कि द्विवेदीजी को मृत्यु के बाद भारत की राजधानी दिल्ली में जो अपूर्व सम्मान मिला वह हिन्दी का ही सम्मान है । द . इस प्रकार हम देखते हैं कि आचाय हिवेदी के व्यक्तित्व का विकास अनेक अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में होता रहा है जिसे उनकी क्ृतियों में सहज ही देखा जा सकता है । एक आलोक शिखर के रूप में आचार्य द्िविदीजी ने संकठ की घड़ी में हिन्दी भाषा और साहित्य का नेतृत्व किया है जिसे हिन्दी जगतु भूल नहीं सकता । दविवेदीजी के साहित्य का मूल्यांकन करते समुय, यह्‌ आवश्यक है कि उनके व्यक्तित्व को सामने रखा जाय । इसके अभाव में तो उनके उपन्यासो का मूल्यांकन दही ही नही सकता | इसके लिए उनका एक संक्षिप्त जीवन परिचय दे देना आघश्यक ह । एक परिचय आचायं हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ला एकादशी संवत्‌ १९६४ ( सन्‌ १९०७ ) को बलिया ( उ० प्र० ) जिले के आरत दूबे का छुपरा” नामक ग्राम के एक सरयुपारोण ब्राह्मण कुल में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी ओर माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था । वस्तुत: माता-पिता का नाम ही हिवेदीजी . केरूप में साकार हो उठा । उनको प्रतिभा जितनी ही ज्योतिष्मती थी उनका व्यक्तित्व उतना ही अनमोल । ्विवेदीजी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था) वैद्यनाथ से हजारी प्रसाद बनने के पीछे एक कथा बतायी जाता है एक बार इनके पिता मुकदमा लड़ रहे थे । मुकदमे में रुपयों की बड़ी आवश्यकता थी, द्विवेदीजी के पिता के पास उस समय रुपयों का अभाव था। भाग्यवश उन्हें कहीं से अप्रत्याशित रूप से एक हजार रुपयों की उपलब्धि हुई। उनके पिता अनमोल




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