विल्वदल | Vilvadal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
512
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ = क्त কিতা চিক 4
॥
जीवित श्रेतकी तरह केवल म॒ृत्युको दाट देखते हुए जी रहे हैं ।
मानो जीवनका शीर कोई उदेश्य यालद्य ही नहीं है, मरनेके
सभी सामान तैयार हैं। आश्चर्य तो অহী है फि इतनेषर
भी हन मरते नहीं 1
हमारी ऐसी दशा क्यों हो गयी ? हमने अपने दुप-तेज्
ओर बीरयको केसे खो दिया १ हम इस पापके गहरे कीचड़में
क्योंकर फेंस गये इन प्रश्नोंका समाधान करना विल्कुल :
सहज वात नहीं है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि हम केवल
अपने ही कियेका फल इस समय भोग रहे हँ। आज हमें
भारतकी वह प्राचीन पवित्र और आदर्श जीवन-निर्वाहकी
व्यवस्था अच्छी नहीं लगती, क्योंकि हम लक्ष्य-श्रष्ट हो चुके
हैँ। इस समय पाशथात्य शिक्षा, ज्ञान और विज्ञानन तथा
उनकी वाह्य सम्पत्ति, भोगविनास श्रौर नित नयी ` फेसनने
हमारे चित्तको चश्चल कर डाला दै, रपे घरकी _चीजसे
हमारा मन हट गया है। परन्तु पाश्चात्त्य शिक्षा के भी असली
आइशशको हम प्रदण नहीं फर सकते | इस अवस्थामें हमारे
उभय-अ्रष्ट होनेकी सम्भावना द्वी अधिक है। यदि इस समय
हम इसके प्रतिकारका कोई उपाय नहीं करेंगे तो फिर हमारे
भाग्यमें रुत्यु ही अनिवाय ই। |
प्रत्येक देशके श्रत्येक समाजमें एक-एक विशेष भावका
कुछ विशेपत्व रहता है; उसी भावुकों अस्फुटित कर देना
उस देशके लिये प्राण-सश्लारका एक श्रेष्ठ उपाय सममा जावा
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