विल्वदल | Vilvadal

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Vilvadal  by ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ = क्त কিতা চিক 4 ॥ जीवित श्रेतकी तरह केवल म॒ृत्युको दाट देखते हुए जी रहे हैं । मानो जीवनका शीर कोई उदेश्य यालद्य ही नहीं है, मरनेके सभी सामान तैयार हैं। आश्चर्य तो অহী है फि इतनेषर भी हन मरते नहीं 1 हमारी ऐसी दशा क्यों हो गयी ? हमने अपने दुप-तेज् ओर बीरयको केसे खो दिया १ हम इस पापके गहरे कीचड़में क्योंकर फेंस गये इन प्रश्नोंका समाधान करना विल्कुल : सहज वात नहीं है। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि हम केवल अपने ही कियेका फल इस समय भोग रहे हँ। आज हमें भारतकी वह प्राचीन पवित्र और आदर्श जीवन-निर्वाहकी व्यवस्था अच्छी नहीं लगती, क्योंकि हम लक्ष्य-श्रष्ट हो चुके हैँ। इस समय पाशथात्य शिक्षा, ज्ञान और विज्ञानन तथा उनकी वाह्य सम्पत्ति, भोगविनास श्रौर नित नयी ` फेसनने हमारे चित्तको चश्चल कर डाला दै, रपे घरकी _चीजसे हमारा मन हट गया है। परन्तु पाश्चात्त्य शिक्षा के भी असली आइशशको हम प्रदण नहीं फर सकते | इस अवस्थामें हमारे उभय-अ्रष्ट होनेकी सम्भावना द्वी अधिक है। यदि इस समय हम इसके प्रतिकारका कोई उपाय नहीं करेंगे तो फिर हमारे भाग्यमें रुत्यु ही अनिवाय ই। | प्रत्येक देशके श्रत्येक समाजमें एक-एक विशेष भावका कुछ विशेपत्व रहता है; उसी भावुकों अस्फुटित कर देना उस देशके लिये प्राण-सश्लारका एक श्रेष्ठ उपाय सममा जावा




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