भारत को प्रयाग की देन | Bharat Ko Prayag Ki Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
नजर पढ़ेगी, मुझ पर “प्रव्यपस्पित चित्ताना! का दोपारोपण करेंगे। चस्तुतः
उनका यह श्रारोप्र सामान्य दृष्टि से न्यायसगत ही होगा। क्योंकि प्रयाग
विश्गिद्यालय या एक रिसच स्कालर हूँ 1 मीरा और उतठा जीयन चरित्र! मेरी
सिप्तिस का उिपय है। प्रिपय इन्द्रायण री फल वी माँति देसने मे मुन्दर डिन्तु
মাত কর কভার ই | সীতা ই सम्बन्ध भे सो करने का मार्ग प्रशस्त नी वरन्
कशटकारीर्ण है । श्रमी तक उनरे पति और पिता का नाम असदिग्य नहीं, जन्म
मृत्यु स्थान निस्सन्देह नही, जन्म मृत्यु तियि सिद्ध प्रसिद् कीं। निपपं रमी तक
उनती सही जन्म कुण्डली हो नहीं वन पाई । दजना विद्वान लैसका ने इन तमाम
सन्देदीं को निस््सन्देह बनाने क' चेष्ठा की किलु परिणाम हुआ 'धुति पुराण बहु
कच्मो उपाई। छूद न अधिक अधिक श्रय्काई? ]
ऐसे पथ का पयिक होनर मैं रिपय क्या हुआ १ इसका केपल एक ही उत्तर
है कि मैंने ऐसा करने की आ्राश्ञा श्रपने श्रद्ेंय एवं पूज्य गुसजना--ड॥० धारेन्द्र
यर्मा तथा दा० रामझुमार वर्मा स सह प्राप्त कर ली थी। पथ प्रद्शक के
इशारे पर चलने वाला पथि कमी मा पथ में रिपथ नहीं हो सकता, उसके
शाशीर्षाद स दुषथ भी सुप्थ हा जाता है । एक पहुँचे हुये फज्रैर द्रि का
कहना भी है कि--
व मय सुज्जादा रगीं कुन॒ गरत पारे मुगा ग्रोयद
कि सालिक बखबर न बुपद जे राहो रस्म मजिलहा
थ्र्थातु--श्रगर अपने गुरु आशा दें कि লু श्रपनी पूजा की श्रासनी श्रीर प्रेचपात
यो शराब से रग ले, ता शिष्य का ऐसे निपिद काम क करने म भी हिचिक्चाना
नह चाहिये, क्योंकि पथ प्रदर्शक सालिक मनिन के শীল (যাগ, ভাই কানন
से मेसबर नहीं हे। मालूम नहा इसमें उसकी कया मशा है।
हमारे अग्रणी, श्रम्मण लेखका तथा साह्त्यिकरारा ने मी एक श्रनरीति-राति
चला दी दे कि लिजते समय अन्त म, और छुपते समय पुष्कर फे आंद में
लेक क दो शब्द? रूपी वक्तव्य लिसना जरूरी हे। वकव्य लिसना ही दे,
क्योकि यह ठेय कुटेव, प्रकाशर, पाठक, ता पिक्ेता थ्रादि सो में व्याप्त हो
गया है । फिर आधुनिक लेखकों म इस रोति ने परम्परा का रूप धारण वर लिया
है, परम्परा हो नहीं अब तो यह साहित्य भी लोक बन गई है। रीति से शनरीति,
भर्पया के विपरीत कया लीक से अलीक যয बेलाक चलना मेरे लिये न
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