राजस्थानी भाग - २ | Rajasthani Bhag-2

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Rajasthani Bhag-2 by डॉ. दशरथ शर्मा - Dr. Dasharatha Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ননা-লণী হাহ पुरन उत्तर बोलतां समयी भरो कहंत पिच्छम कदिजे करवसो दिख्खण कार महंत ४३ चहु दिस मेक टहूकडहो बरख वड़ो विकराऊ कोइक जत्र माहछत्ने. कोइक सिधा पार ४४ वैसाखा पनम ভিলা মাতম करे धान दुर्हणो भाद्र भड्वौ । वैण धरे ४५ ইলা जो घण करे पाच बरण भाकास तो जणेत्नो भङ्की, पुदमी नीर नित्रास् ४६ प ज्येए जेठ धराहड जो कर सात्नण सलिल न द्दोय ज्यू साब्रण त्यू भादत्नो नीर निवांणां जोय ४७ जेठ वदी दसम दित्रस जले सनि-वासर होय पाणी होय न धरण मे विरका जीत्नौ कोय ४८ अच्छा जमाना कहते हैं, पश्चिममें बोले तो जमाना साधारण कहा जाता है, और दक्षिणमें चोले तो बढ़ा भारी अकाल । यदि चारों दिशाओंम सियार बो्छ ओौर क ही आवाज करें तो वर्ष बड़ा भयकर हो, कोई मालवे जाय ओर कोई सिंधके पार । ४५ वेखाख सुदी पूणिमाके दिन यदि मेह आरम फरे तो, हे भडली, बात सुन, भादॉमें धान सस्ता होगा । ४६ बेसाख में यदि आकाशमें पचरगे बादल हों तो, दे भइली, पृण्वी पर पानीका निवास জান ভী। ४७ जेठमें यदि बादल खूब गड्गड़ावें तो सावनमें पानी नहीं वरसेगा | वेसे ही भादोंमें भी पानी केवल नीचे स्थानोंमें ही देखनेको मिलेगा | ४८ जेठ बदी दखमीके दिन यदि शनिवार हो तो पुथ्वी पर पानी नहीं बरसेगा, और फोई बिरले ही जीवित रहेंगे । लेसे सावनमें १३




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