प्रपंच परिचय | Prapanch Parichay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হীনহাজ ५
ह एोजनेका यन करता है, इसलिए यह बल्पू्षक कषा
जा सकता है क्रि फो भी प्रतिभारारी मत्िष्क दार्शनिक तिमवी-
से पचित न्दी ख सकता । अयवा-
° (08 88 16 18, 1001081 10100 10189 000110-
80711858, /
0601९608} 21110509 172), 14.
। मानवी मत्तिष्कका स्वाभाविक निर्माण ही उसे दार्शनिक
विमङफि लिए बाधित करता हे | ? डाक्टर पाठ्सनने इसी भावकों
विदादतर रूपमे व्यक्त किया है । उनके अपने शब्द हैं--.-
# 196] 00100 &100 कलक प्रात, # 16256 0ए९'ए
10010181197 ०९१९०160 100) 1788 6. 10111109011), “00९
01910 108)) 01 ४6 0९00९, 00 088 ४ 11110500. 8७:
(1१९5 जा 87590 {0 116 10658078 1९भरवाणट ८
0110111 87 त65 $ 01 619 0110 द्वात 17910, 1) (18
50786 1)60019 1151106 10 % 5৮289 01 08/009 11979 $11611
7111080.0ए 2190
[06000081017 100 12101108010), 21), 8. `
'संसारके प्रत्येक जाति और व्याक्ति, या कमसे कम मध्यम अणीकि
समुन्नत व्यक्तियोंकी अपनी फिछासफ्री अवश्य होती है । यहाँतक कि
समाजके साधारणतम व्यक्तिकी भी फिलासफी है | वह भी में क्या हैँ !
और प्रकृति क्या है? हम दोनों कहाँसे आये ओर कहाँ जॉँयगे ? अदिः
प्रश्नोकों हल करनेका यत्न करता है | फलतः संसारमे रहनेवाले
प्रत्येक व्याक्तिदी अपनी अपनी फ़िलासफी मी अवश्य होती है |? ..
उपयेक्त उद्धरणोंकों देखकर यह परिणाम बड़ी स्पष्टताके साथ
निकाल जा सकता है कि दरौनका विषय्र या दाशेनिक प्रवृत्ति-बढ़ी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...