मन को वश करने के उपाय | Man Ko Vash Karne Ke Upaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) होनेपर तो यह परमात्माक्रे ध्यानसे एटाये ज़ानैपर भी ন हटेगा | मन चाहता हूँ सु । जव्रतक एसे वहा खख नदीं मिता, বিবি হু दीपता है तवत यह्‌ विपयोमिं समता ई। जवं अभ्याससे विषयर्मि दुः्प और परमात्मामें परम खुख प्रतीत होने लगेगा तब यह स्वयं ही विषयोको छोड़कर परमात्माकी ओर दाड्रेगा, परन्तु अब तक ऐसा न ही तबतक निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये । ग्रह मालूम एते दी किं मन अन्यत्र भागा हूँ, तत्काल इसे पकड़ना चाहिये) इसको पक्के चोरकी भाँति भागनेका बड़ा अभ्यास दे इसलिये ज्यों ही यह भागे त्यों ही इसे पकइना चाहिये । ध्रीभिगवानूने कदा ई-- यता यतो निथरति मनश्वश्चरमस्थिरम्‌ | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वकं नयेत्‌ ॥ (गीता ६ । २६) यह चञ्चट मीर अस्थिर मन जां जदा दौड़कर जाय वहां सि हटाकर चारम्बार इसे परमात्मामे ही ख्गाना चाहिये । जिस जिस कारणले मन सांसारिक पदाथोमिं चिचरे उस उससे रोककर पस्मात्मामें स्थिर करे | मनपर ऐसा पहरा बैठा दे कि यह भाग ही न सके | यदि किसी प्रकार भी न माने तो फिर इसे भागनेकी प्री स्वतन्त्रता दे दी जाय, परन्तु यह जहा जाय चहींपर परमाव्माकी भावना की जाय वहोंपर इसे परमात्माके स्वरूपमें छाया जाय | इस उपायले भी मन स्थिर हो सकता है।




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