श्री जवाहर किरणावली [भाग 12] | Shri Jawahar Kirnawali [Bhag 12]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र पुरोहित ~ क्यो मन्त्री ~ इनकी आत्मा नही चाहती | হী प्र पुरोहित - आप शास्त्र की बात नहीं समझत्ते। हम लोग न पशुओ की कुछ भी हानि नही कर रहे हैं। हम तो इन्हे सीधे स्वर्ग भेज रहे है। स्वर्ग मे पहुँच कर इन्हे दिव्यसुख प्राप्त होगा। न आप यह बातत जानते हैं और न बकरे ही जानते हैं। हम ज्ञानी हैं। हमने शास्त्र पढे हैं। अतएव इन वकरो की मलाई मे बाधा मत्त डालिये। मन्त्री -आपका ज्ञान तो आपके कामो से ओर आपकी बातो से प्रकट ही ই परन्तु जब यह पशु स्वर्ग चाहते हो, तब तो इन्हे स्वर्ग मेजना उचित भी कह सकते थे। मगर यह स्वर्ग नही चाहते। जबर्दस्ती करके क्यो भेज रहे हो? आखिर बकरे बचा लिये गये। पुरोहित घबराया। उसकी दुकानदारी जो उठ रही थी। फिर उन्हे पूछत्ता ही कौन। वे भी राजा के पास पहुँचे। कहने लगे -अन्नदाता। शाति के लिए यज्ञ प्रारम्भ किया गया था परन्तु यज्ञ मे बलि दिये जाने वाले बकरो को मन्त्री ने छुडा लिया और यज्ञ रोक दिया। राजा असमजस मे पड गया। सोचने लगा- मामला क्या हैं? आखिर उसने मन्त्री को बुलवाया । बकरे छुडवाने के विषय मे प्रश्न करने पर मन्‍्सत्री ने उत्तर दिया- महाराजा। मैंने आपकी आज्ञा से पशुओ को मरने से बचाया है। राजा- मैंने यह आज्ञा कब दी है? मन्‍्त्री - आपने आज्ञा दी थी कि जबर्दस्ती साधु न बनाया जाय। राजा- वह तो साधु बनाने के विषय में थी। बकरो के विषय मे तो कोई आज्ञा नही दी गई। मन्त्री - जैसे दूसरे लोग कहते हैं कि हम साधु बनाकर स्वर्ग मेजते है उसी प्रकार इनका कहना है कि हम बकरो को मार कर स्वर्ग भेजते हैं। जब जबर्दस्ती साधु नही बनाने दिया जाता तो फिर जबर्दस्ती बकरो को कैसे स्वर्ग भेजा जा सकता है? राजा विवेकवान्‌ था। उसने मन्त्री की बात पर विचार किया! विचार फरने पर उसे जचा कि मन्त्री कि बात सही है । এ राजा ने फिर पुरोहित को बुलवाया। पुरोहितो के आने पर राजा ने বু उन्‌ पशुओ को मारने का उद्देश्य क्या है? उन्हें अमर क्यो न रखा जाय? उर अपर रखने से क्‍या ईश्वर प्रसन्न नही होगा? गण সা ५ पर तेः ७... यीकानेर-पौरवी-जामनगर कै व्याख्यान ५




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