आत्म बलिदान | Aatma Balidan

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Aatma Balidan by भाई परमानन्द - Bhai Paramanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९५ आत्मबलिदान & ष्ठे उनका अस्तित्व हो गया । अपरीका आर इं गरेण्डमे थोडी वहुत जातीय एकता पायी जाती ३, जिसका कारण यह है, कि वहा जलयानके सदैव चलनेके कारण फासलेकी दूरी कट गर है । जिस समयसे सफर करदेका आसान तरीका न था, उस समय गचनमेरट हो देशको एक वना सकती थो | अशोकने अपना एक राज्य स्थापित करनेको चेष्ठा की मौर उसमें वह सफल हुआ, परन्तु उसके मर जानेपर भारतवर्ष फिर अपनी पुरानी अवस्थामें चला गया। जब मुसलमान हमला करनेके लिये हिन्दुस्थानमें आये तो उन्होंने खाल खास शहरोंपर हमले किये थे ओर राजा लोग भी फेचल उनको हो रक्षा करना अपना धर्म समभते थे। शेष प्रदेशोंके साध उनका कोई राजनैतिक सस्वन्ध न था, इसीलिये दुश्मन अपनी सारी सेना लिये राजधानीकी ओर भाजाते थे और सारे प्रदेशमें कहीं भी कोई उनकी प्रतियोगिता (मुखालफत) न करता धा। क्विसो एक राज्यका स होना हो उस राज्यकी बड़ी निर्वलता थी, जिससे कि उनके शत्रुओंकों लाभ पहुचता था | मुखलमानोंके राज़ तक भी हम वालिये कनोज़, वालिये अज़मोर आदिक उपा- धिधारी राजा सुनते है, इससे यदी प्रतीत होता है कि वह राजे इन शहरोंके ऊपर अपना राज्य करते थे, शेप प्रदेश राजनैतिक भावसे नितान्त खतन्‍्त्र होता था। जिस समय शहाबुद्दीन गोरी देहलोकों जीतकर अपने एक दास कुतवुद्दीनक्ी वहाका राज़ा दनाकर छोड़ गया, तो वास्तवमें फेचल देहलो शहरका ही राज्य घुसलमानोंके अधिकारमें चल्या गया था, इसके साथ साथ यह जन भ्र्‌ ति थो कि देहलोका ईभ्वर क्गदीश्वरका रुतवा रखता हैं। मुसलमान हाकिमोंक्े कई वश, হল वाद्‌ दूतस, मारन पर शासन फरते रहे ओर ज्ञय कसी कोई सैनिक वादशाहरी देहलीके तग्दतसे उतारकर उसपर अधिकार कर लेता था ता चही शहशाह




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