भारतीय ज्ञानपीठ काशी | Bharteey Gyaanpeeth Kashi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भारतीय ज्ञानपीठ काशी  - Bharteey Gyaanpeeth Kashi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये - Aadinath Neminath Upadhye

No Information available about आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये - Aadinath Neminath Upadhye

Add Infomation AboutAadinath Neminath Upadhye

हीरालाल जैन - Heeralal Jain

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ १२३] मूल एंड हिन्दी पृष्ठ मूल प्रष्ठ हिन्दी पृष्ठ द्वीप और ससुद्रोंका विप्करम्भ शादि १७० হইল रंगा, सिन्धु ग्रादि नदिर्योकी परिवार एकं ग्रे हए पदोकी सार्थकता = १७० ३८० , नदिर्योक्रा वणन १९० ३८७ जम्बृद्वीपका दर्णन १७० ३८० ` भरतक्षेत्रका दिस्तार १९० ३८म सात क्षेत्रोंका नाम निर्देश १७१ ३८० ; च्िद्रेह पर्यन्त पर्वतौ व चेन्रौकां प्रथम च्षेत्रका नाम भरत क्यों पड़ा / १७१ ३८० , विस्तार १९० ३८८ भरत क्षेत्र कहां है श्र उसके छह । उत्तरके क्षेत्र श्रादि दक्षिणके क्षेत्र खण्ड कैसे होते दे? १८१ ३८० : आ्ादिके समान हैं ০ आााड विजया श्रर्थात्‌ रजतद्विका वर्यन १७१ ३८१ भरत व ऐरावत्मे काल विचार १९१ श्८८ हेपवत ग्रादि ज्षेत्र कहां ह और उनमे चूद्धि ओर हास किनका होता है इसका क्या-क्या विशेषता १५२ ३८१ विचार १६१ ३८८ विदेहत्षेत्रके भेद तथा उनका विशेष वर्णन १७३ ३८२ : अवसर्पिणी व उत्सपिणीका लक्षण १६१ ३८८ मेरुपर्वत कहां है ओर उसका अवगाह कालके छ॒ः भेद व उनका परिमाण १६२ इ८८ व व्यास आदि कितना है इस अन्य भूमियाँ अवस्थित हैं १९२ ३८५९ बातका विशेष विचार १८८ ३८२ । हैमवतक्र हारिवर्पक श्रौर दैग्डुरवक रम्यक ब्रादि चेर कदां हे ओर उनमें मनुष्योकी च्रायुका वर्णन = १९२ ३८९ क्या विशेषता है ? १८१ ३८२ ' उक्त मनुप्योके शरीरकी ऊँचाई व हिमवान्‌ श्रादि पवंतोकते नाम १८२ ३८३ आहारका नियम १६२ ३८६ हिमवान आद शब्दोंका अर्थ तथा दक्षिणके ज्षेत्रोम स्थित मनुष्योंके समान उनकी स्थिति १८२ ३८३ उत्तर क्ष्रों सिथितमयुष्य हं १९२ ३८६ पव॑तोंका रह १८४ ३८४ | विदेह क्षेत्रके मनुष्पोंकी श्रायु १९२ ३८९ पवतोंकी अन्य विशेषताएँ ঘল ३८४ | विदेह ज्षेत्रके मनुष्योंके शरीरकी पवतोंके ऊपर छह सरोवरोंका वर्णन १:४ ३८४ ऊँचाई व आहारका नियम १६९२ ३5८६ भरतक्षेत्रक्े विष्कम्भका प्रकारान्तरले चर्णन १९३ ३८९ लवण समुद्रका विप्कम्म व मध्यमें जलकी ऊँचाईका परिमाण १९३ ३८६ चार महापातालाका व अन्य पातालों प्रधम सरोवरके ग्रायाम ओर विष्कम्भ का चर्णन ९८४ ६८४ प्रथम सरोवरके अ्रवगाहका निर्देश १८५ ३८४ प्रथम सरोबरके बीचके पुष्करका परिसाण १८७० ३८५ श्रन्य सरावर व उनके पुप्करोंके परि- माणका विवेचन 4१८५ ३८५ का वर्णन १९३ ३८६ सृञम आये हुए 'तदद्विगुणद्विगुणा: जलकी धारण करनेवाले नगोका पदकी सार्थकता . १८६ ३८५ व उनके आवासोंका वर्शन १६४ ३९० सरोवरंसें रहनेवाली देविये नाम गोतम हीपका वर्णन १६४ ३९० व उनकी श्रन्य विशेषताएँ. লু হল | लवण समुद्र कदां कितना गदरा दै १९४ ३६० चह नदियाक्रे नाम व उनका स्थान- सव्र समुद्रोके पानीका स्वाद ६८ ३९० + १ जलचर जीव किन समुद्रोंम ই গাহি १ নিলু ৭৫৩ হি. বি दो-दो नदियोंमें प्रथम नदीका पूं | घातकीखर्डछा वणन १९४ ३९० _ समुद गमन निरूपण १८७ ३८६ | धातकीखण्डर्म भरत आदि कज्षोत्रोंके दो-दो नदियोंमें द्वितीय वदीका पश्चिम विष्कम्भ श्रादिका निरूपण १९५४५ ३६० समुद्राय रासन १८७ ३८६ | पुप्कराध द्वोपका दर्णन , १९६ ३६१ गगा, सिन्धु आदि नाद्याका पद्मचद्वट चे शब्दकी साथंकता ५६६ ३६१ आदि सरोवरोंसे उत्तत्तिका पुष्करगर्धमं भस्त आदि क्षेत्रोंके वर्णन १८७ ३८६ विष्कम्भ श्रादिका वर्णन १६६ ३६५ ९५ ` ५७ শীট ০৪০০৮ ০০৮০০৯০০০ ৮৯-৮০-৯৯০৯ দল ১০৯ जप तो पट




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now