खून के आंसू | Khun Ke Aansu

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Khun Ke Aansu by कुमार - Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ लङ्का अवत देद्धिक में ही पढ़ता है, अमीर खानदान का शौकिन ज्यादा है--बिलकुल अप टू डेट । शायद उश्च सुभ से कुछ ही ज्यादा होगी । मेरी माँ को यह. बर पसन्द नह डैः चके एक दिन वात के छिलखिले में थे पिताजी से बोर रही थी---अुझे तो यह अनमेल व्याद पसन्द नही है पिनाजी ने द्यं श्वर में उत्तर दिया--कमला के भाग्य भें यही অনা थातों मे क्‍या ऊरूँ। आज दो सोन बर्षों से तो लड़के की खोजम कितनी गलियों कोखाक छान डाली परन्तु अभम समाज डतमो आगे नही वद दै! स्केल धार च्म दी कथः है, अकेने चना অভ नहों फोड़ता | आँ--अगर अपनी ज्ञाति में योग्य लड़ का नहां। मिलता तो प्रायी जाति का लड़का क्यों नहीं ठीक कर लिया | जात पात में आछ्िर रखा ही क्‍या है। तिसपर भी बशाबर खुधार की डीग हाकते रहते हो । पिता--कहा तो कि, अकेले सुधार चाहने से ही क्‍या होता है। एक ता इतने पर भी ज्ञाति वाल श्रार्यसराजी ककर অভ खड़ा करने में बाज नहीं आते, अथर विजातीय सः कमला की सोदी कर दू तो यदह र.ना मी प्रलयं हौ जागर मॉाँ--छुघारक को तो इसकी परबाह नदीं दनी चदि 1 पिता--व्यंय कर अधिक मत खताओं। तुम्हें हमारे समाज की जड़ता का क्या अनुभव * माँ-- सैर, जो जीमें आवे करों, लेकिन मेरी तो यही




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