कलिंग का राजकुमार | Kaling Ka Rajkumar

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Kaling Ka Rajkumar by कमल शुक्ल - Kamal Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कांची से कलिंग तक राजकुमार पुरुषोत्तम देव कांची नरेश का मेहमान बन गया था। उसने डेरे में सूचना भेज दी उसने घोषणा करवायी कि वह एक सप्ताह के बाद यहां से प्रस्थान करेगा। राजकुमार नित्य सवेरा होते ही अन्त.पुर में बुलाया जाता। महारानी उससे हंस-हंस कर बाते करतीं । पद्मावती का संकोच भी कम होने लगा था। अब वह् भी राजकुमार से बातें करती। इससे उसको आत्म-सुख की अनुभूति होती॥ नित्य प्रभाव की बेला मेँ प्राची के अम्बर में सिन्दूरी सूरज निकलता उसकी सुनहली किरणें पहले पेड़ों की फुनगियों को छूतीं फिर वे धरती का मुंह आकर चूमतीं। दिन फैल जाता, जन-जीवन जागरूक हो जाता। उसके बाद दोपहर आती तीसरा पहर भी अपनी कहानी कहता और फिर सांझ आ जाती उसके बाद आती रात। तब दिख्लाएँ धूमिल हो जातीं। तारे चौकीदार बनते वे धरती पर पहरा देते॥ एक सप्ताह ऐसे बीत गया जैसे रात के बाद प्रभात आया हो। अचानक एक दिन कलिंग से दूत आया। उसने आकर समाचार सुनाया कि कलिंग नरेश का देझ्लन्त हो गया है। उनकी मृत्युदेह नाव में तेलभर कर उसमें रख दी मयी है। राजकुमार पुरुषोत्तमदेव ने अपने माथे पर दोनों हाथ दे मारे, छाती 15




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