जीवन के तत्त्व और काव्य के सिध्दांत | Jeevan Ke Tatva Aur Kavya Ke Siddhant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
363
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तीसरा अध्याय
आत्ममाव ओर काव्य-विधान
[ आत्ममाव--एक अन्विति, ३८--आत्ममाव की अभिव्यक्तिकला,
३८--टाल्सठाय का कला-सम्बन्धी मत, ४०--समीक्षा, ४१--कलाकारों के
भेद और काव्य में निरूपित साव, ४३--आत्मभाव की प्रतिष्ठा और जीवन
की स्थिति, ४४--आत्मसाव की अनेकता, ४४--शक्ति और ज्ञान, ४६--
प्राचीन और नवीन छन््द, ४७--वेज्ञानिक सभ्यता और काव्य-विधान का
नवीन क्षेत्र, ४५--काव्य और जीवन का तारतम्य, ५०--विज्ञासबृत्ति और
काव्य-विधान, ५१--जीवन के सत्य में काव्य का समन्वय, ५३--कवि का
जीवन और काव्य-मर्यादा, ५८--आत्मसाव और काल की संकान्ति, ५६--
भाव और विचार में काल का व्यवधान, ५७--आत्ममाव और चरित्र के
সলিঅন্ত, ५८--संक्रान्तिकाल और काव्य, ५९--काव्य-विधान में मूलतत्त्व
का विश्लेषण, ६०---कलाकार की शैल्ली और उसका आत्ममाव, ६२ ]
चौथा अध्याय
सन का ओज और रस
[ मन का ओल और रसास्वादन, ६३--ओज का सश्य और आनन्दू-
प्राप्ति, ६४--संचित ओज और उसका उपयोग, ६६--आनन्द और विषाद्
तथा योज, ६७--भोज और स्थिति-परिवत्तेन, ६८--मन की स्थिति और
व्यवधान, ६९--मन का संस्कार और रस की प्रतीति, ६९--काव्य-वेचित्र्य
अथवा चमत्कार, ७०--रस की ग्रतीति में मनोरज्ञन--एक साधन, उद्देश्य
नहीं, ७१--रस-पद्धति मानसिक व्यायाम है, ७*--आननन््द और विषाद् का
रासायनिक सम्मिश्रण, ७४--काव्य में संकेत या उपेक्षा से ओज की रक्षा, ७६ |
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