चंदायन | Chandayan

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Chandayan by डॉ परमेश्वरीलाल गुप्त - Dr. Parmeshwarilal Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घर था और उसमें किन छन्दोका प्रयोग हुआ था ॥ भुनतखव रे प्रमाणे अकाश में भा जानेके बाद दाऊदके समयके सम्बन्धर्मे जो मिध्या घारणाएँ कैली थी, उनका निराकरण हो जाना चादिए था 1 पर परझुराम चतुर्वेदीने उसवा विचित्र अर्थं ख्गा- कर एक नया भ्रम प्रस्तुत फर दिया । कदाचित्‌ उन्होंने मिश्रवन्धु और रामहुमार वर्माये फथनवे साय मुनतखवये कयनका समन्वय फ्रनेका प्रयन क्वा । १९५३ १० भ कमल छुरशरेषठका शोध निबन्ध हिन्दी प्ेमाख्यानर कान्य प्रकाशित हुआ। इस अन्यमें उन्होंने पूर्व शात उपयुक्त अधिकाश सूचनाओं वो, जो उन्हें उपलब्ध हो सकी, एकन कर बदायूनीके कथनपर बल देते हुए मत प्रकट किया कि घन्दायन का रचनाकाल बि० सं० १४२७ के निकट था। विस्दु इस अन्यमें दी गयी महत्ववी यूचना यद दै कि चन्दायन की कोई प्रामाणिक प्रति अमी- तक नहीं मिल सकी | एक अप्रमाणित-सी प्रति डा० धीरेन्द्र वर्माने अवश्य देखी है। परन्तु उसे वे कुछ कारणोसे विशेष ध्यानपूर्वक नहीं देख सके और इस काव्यके सम्बन्धे इछ निद्चयपू्वक बतलानेमे असमे ह ॥ पाद रिप्पणीमे दस सम्बन्धमे यु अतिरिक्त सूचना भी है जो इसवा प्रवार है--घीकानेरफे शरी पुरुषोत्तम शर्माके पास शस प्रन्यकी एक प्रति है । शमौजीने यह्‌ पोथी एक सज्जन द्वारा प्रयाग भेजी थी, परन्तु उन्होंने पोथीकी परीक्षा अच्छी तरह भीरेन्द्र बर्माको नहीं करने दी ।' कुर श्रे्की इस पादटिप्पणीके अतिरित्त' अन्य यूतसे भी इस प्रतिफे सम्बन्धमे हमें जो जानकारी प्राप्त हुई है, उससे भी হাল হীরা है कि धीरेन्द्र वर्माने उसकी प्रामाणिक्तामें सन्‍्देह प्रकट क्या था। धीरेन्द्र वर्मोने इस प्तिको चाहे जिस भो दृष्टिते देखा हो, चन्दायनवी किसी भ्रकारकी अतिके अस्तित्वका शान भी अपने आपम महत्वका था | परवर्ती अनुसग्पित्तुओंका ध्यान इस ओर जाना चाहिये था। खेद है क्सीने इस ओर ध्यान नहीं दिया | १९५५ ई० में प्रेमाख्यानक काव्य और हिन्दी सूपी साहित्यसे सम्बन्ध रफनेवारे तीन ग्रन्थ प्राय एक साथ ही प्रकाशित हुए। ये तीनो ही अन्य, शोध निबस्ध हैं, जो विभिन्न विश्वविद्याल्योंवे समक्ष पी०एच०डी० की उपाधिके निमित्त प्रुत किप गये थे। ये ईैं--हरीकान्त श्रीवास्तव इत भारतीय प्रेमाख्यानक काव्य, विमलकुमार जैन इत सूफी मत और दिन्दी साहित्य और सरछा হাতা হুল জামী परवर्ती हिन्दी सूफी फवि। विपयकी दृश्टिसि श्रीवास्तवके म्न्थका विस्तार सबसे अधिक है। उसम॑ दाऊदके अन्थके सम्बन्ध्मे विशेष रूपसे और विस्तृत जानकारी फी अपेक्षा थी जाती है, विन्तु श्रीवास्तवकी जानकारी इस बाततक ही सीमित है कि सर्व प्रथम >_ सेल्छा दाऊदकी नरक घन्दा कहानीके बाद कुतववनकी झगावती मिलती ।' অথ कान्य सम्रद) प्रयाग, (द्ितीय सरकरण), स० २०१३, पृ० ६२-६१ ॥ हिन्दी प्रेमाख्यानक कान्‍्य, प्रयाग, १९५३ ई०, पृ० ८ । बह्टी; १० ८, परा० २० २१ भारतीय वरेमार्यानक कान्य, काक्ञौ, १९५५ इ०, पृ० २९1 ५ ७ ५




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