सागर के रहस्यों की कहानी | Sagar Ke Rahasyon Ki Kahani

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Sagar Ke Rahasyon Ki Kahani by एच. एस. विश्नोई - H. S. Vishnoi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2) 95 ५ ~ महासागर की उस्लूत्ति ১২ হা विसी अय आवाशीय पिड के हस्तक्षप द्वारा एक से बन जिससे सूय बना । राप्लास ने कल्पना की कि प्रारम्म मे एक घूणन बरता हुआ तारा था जिसम एवं अ्चण्ड विस्फाट हुआ जोर बह हर लिया में अरवा-सरबा मीट तक छिनरा गया ) तार का घूणन, यस और घूट के पल गए हुए बादल मे पहुच सया जिसके कारण यद्‌ समस्त महति घीस धान धूमन लगी । मैसं जस यह चक्कर साती गई, উজ विस्फोट स निवारी गर्मी वादल मम अतरिष मे विकिरति हाती गई और নার ठंडा एव सदुचित हाना प्रारम्म हा गया । ठीक उसी तरह জল নাহ केदरावाज या चक्कर লাব- स्केटिग वरन वाखा व्यित अपनी मुनाना को धाहर पछाए रसने की बजाएं उन्हें शरीर से सटाए रखकर अधिक तेजी से चकरर खाता है, उसी तरह सकुचित होता जाता बादरु भी अधिक तीब्रता से चक्कर লাল ক্যা | হবু गी तरह चक्कर खत जान्‌ से बादल एक तहतरी के रूप मे चपटा होन लगा जौर अन्त में वह इस रफ्तार पर पहच गया कि उसके बाहरी सीमात से गसाय पदाथ का एवं वकूय टूट बार अडुग हा गया । ऊर्जा की इस हानि से वाटल वा चक्र खान वी रफ्तार मे किसी बदर कसी आ गई किन्तु लगातार सबुचित हांते जाने के कारण उसवी चाल मे पुन तीब्रता आती गई और उस हट तक पहेच गई जब कि एक और वलय टट कर अछग हो गया । जतत बादल सकुचित हाता हुआ आज वे सुय के आकार तवः पहुच गया आर उसक॑ चारा आर घूमते जान वाले ना या दस गँंसीय वकूय बन गए। छाप्ठास न सोचा कि इन वल्या की घूलि के कण अपने गुरुव के कारण एक दूसरे की अर जाकपित हात गए हागे जारं ग्रहा के आकार वे ठास पिड बनते गए हागे। प्थ्वी की उत्पत्ति बे इस वणनात्मक सिद्धात वा पहले ता अधिकाश विज्ञानियां न स्वीकार कर लिया, हालाकि भरे ही राप्लास ने सभी तफसीला वा गणितीय दृष्टि स हल नहीं क्या था । জাত ঘন सी तरह निकल जाने पर एक अग्रेज भमांतिक विज्ञानी जम्स क्‍लाक मेक्सवेछ ले दस सिद्धात का गणितीय परीक्षण क्या । मक्सवेल न देखा कि पतले वलया के गुरु ययल इतने पयप्ति नही रह्‌ सके होते कि उनके द्वारा टूर टूर छितराए हुए कण एक साथ छाए जा सकते थ । ग्रहा का तिमाण करत के दजाए थे सदा उसी तरह कायम रह जस कि शनि के वलय जा गस एव घूलि के असरय कणा के बते है। य कण शनि का चक्करकगा रहे हैं किठु व॑ इतनी अधिक दुर टूर हैं कि उनमे परस्पर जमाव हाकर उपग्रह नही था मकता । না के विचानी कसी विध्वसक सघट्टन और विनाशकारी विस्फोट व




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