भारत व पाकिस्तान का आर्थिक व वाणिज्य भूगोल | Bharat Aur Pakistan Ka Arthik V Vanijya Bhugol
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राकृतिक परिस्थितियाँ १७
वापस होने लगती हं भौर दिसम्बर के मध्य तक यह् मानसून विलकुल ही केप हो
' जाता है। इसके फलस्वरूप उत्तरी भारत में सौसम शुष्क हो जात! है | परन्तु वंगाल
की खाड़ी पर से गुजरने के कारण इनमें नमी आरा जाती है जिसके फलस्वरूप मद्रास
राज्य के तदीय भागों व प्रायद्वीप के पूर्वाद्ध में वर्षा होती है
उत्तरी-पुर्वी सानसून--ये मानसूनी हवाएँ जनवरी में प्रारम्भ होकर मार्च तक
चलती हैं । इस काल में मध्य एशिया के भारी दबाव वाले भागों से शुष्क हवाएं फारस
श्रौर उत्तरी भारत का तरफ वहने लगती हैं । इन हवाओं के कारण उत्तरी भारत
प्रौर विशेषकर पंजाव के मैदान में हल्की वर्षा होती है । रवी की फसलों के लिए इस
हल्की वर्षा का बड़ा महत्व है । इस मानसून की दूसरी शाखा में ठंडी व शुष्क हवा
हिमालय के पूर्वी भाग को पार करके आगे बढ़ती हैँ । बंगाल की खाड़ी पर से गुजरने
के कारणों इन हवाओं में नमी भ्रा जाती है और फलत: मद्रास के तटीय प्रदेशों व
लंका में वर्षा होती है । यही कारण है कि इन प्रदेशों में जाड़े की ऋतु में वर्षा
होती है ।
« | भारत की श्रौसत वापिक वर्षा ४२ इंच है परन्तु विभिन्न स्थानों पर वर्षा की
मात्रा में बड़ी विभिन्नता पाई जाती है । यही नहीं वल्कि विभिन्न सालों में वर्षा की
मात्रा कम या ज्यादा हो जाती है । किसी साल तो वर्षा का श्रौसत ६० से ७० इंच
तक हो- जाता है और किसी साल मानसून हवाओं के सफल रहने के कारण ३० से
३२ इंच तक ही वापिक श्रौसत रह जाता है। इस विभिन्नता व् अनिर्चितता का
फसलों की उपज पर बड़ा असर पड़ता है? भारत की वर्षा की दूसरी विद्येपता यह है
कि यहाँ की भूप्रकृति का वर्षा की सात्रा पर वड़ा प्रभाव पड़ता है! भारत के पहाड़-
पहाड़ियों को यदि हटा लिया जाए तो भारत को वर्षा इतनी कम हो जाएगी कि देश
की आवादी के निर्वाह व भोजन की समस्या अत्यन्त प्रचण्ड रूप धारण कर लेगी 1
भारत की वर्षा का विशेष आर्थिक महत्व है । भारत की कृषि यहाँ की वर्पा
ही निर्भर रहती है । जब वर्षा अच्छी होती है तव फसल भी खूब होती । परन्तु
इसके विपरीत जिस साल या जिस भाग में वर्षा कम होती है, उस दशा में अकाल
पड़ जाता है । सच तो यह है कि पानी से लदी हवाओं के रुख में जरा-सा परिवर्तन
हो जाने से विस्तृत वर्षा के प्रदेश भी मख्स्यल के समान. हो जाते हैं ॥ जलवृष्टि
भप्रकृति तथा हवाशं के रुख पर निर्भर होने के कारण भारत की वर्षा का भौसत सदा
वदला करता है ।
3 भारत की वर्षा का वितरण अनिश्चित व अनियमित है। कहीं तो अत्यधिक
वर्षा होती है और कहीं १ या २ इंच से अधिक वर्षा भी नहीं हो पाती | इसके
' अलावा बहुत थे भागों में वर्षा का होना बिल्कुल ही अनिश्चित रहता है। एक और
४ विसोपता यद है कि केवल मात्रा ही शनि हीं होती वल्कि वर्षा का समय भमी
' छुक नहीं रहता । कभी एक महीने में वर्षा होतो है तो कभी उसके एक-दो महीने पहले
-* या. बाद | इसी सब अब्यवस्था के कारण भारत में अक्सर अकाल पड़ते रहते हँ---
कभी किसी साग में तो कनी फिसी में | कम वर्षा होने से तो श्रकाल पड़ जाता है
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