संस्कृत-शिक्षाविधि | Sanskrit - Shikshavidhi Vol.-6

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Sanskrit - Shikshavidhi Vol.-6 by गौरीशंकर - Gaurishankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका संस्वृत नावा और दसझा साहित्य मनुत्य को सानयता के पथ पर दमय कने रनदटाम्नि न नच्य्यन्विनः वे আলীর কল, লা संस्कृत-साहिस्य में मिल्थते 6, अन्यप्र कहीं नहीं मिलेंगे। यही कारण हि गीता, पद्धलस्थ्, डपनिषद. रामायण, मद्रामादव, दौद्ध प्रन्थों श्रौर कान्द की रचनाओं के अनुवाद संसार की तम्य मध्र में निवत हैं। संस्कट-सादिस्य का श्रनुरोलन मनुध्य को सम्य दनान ६1 मन्न হী मावृश्ला িশ্যাণী कोर्मसटत, परिच्यु दया हागनिद्ध बनाती है । खरहत को आख्यास्मिका की श्रावरथकता केवल भारत को ही नहीं ब्रवितु समस्त खंसार को है। संग्हृत की सक्ता और महत्ता को परराने खथा पड़चादने वाले स्थक्ति ही दो सारत के नेता थने টি] হ্যা ফা पाट पट्रनिवान्न क्ोडमास्थ दिखक, भारतीय सम्यता को प्रशिष्टाविस करने थाले सहामता सारथीय, वेदास्त के व्याद्याता और स्थतस्य मारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरख श्री उक्रव्ती राहगोपायाधाय, थे सब संस्कृत के श्रनुरागी दर प्रेमी सो हैं। भारत के हये दिवान में भी संस्कव को समुद्ित स्थान दिया गया हैं। खंद्रेष्ः, भारत को भ्रास्मा संस्वृत में ४ । इसे ईंदने के लिए सं॑म्दंत को शगण से जाता हागया । इस युग में ऋषि दवातत्द सरस्यती ने संस्कृत का जितनी শ্রী ऊसी सेदा की है, उतनी और देसी कदादित ही सिसी से की हो 1 बेद-सर्देश, सम्ात-सुधार খা स्वेटस्त्रता को मूरति का प्रसार হলদে के कारण ही म्यामाजोष्ा सपन धन्यद्ृध्राद। पररय पश्चाद स्वामी जी को মিটার লক গ্রহ হা | আহা শা শঙ্কা হান রন শ্রী পারিস হরিঘযখা | প্লিনা উড সুগল গীত বিল के डपगास्थ एश्वोगज़ धौड़ान के समय सझ আকুল কটা হাত হুল অন্থার रहा होगा, ड्लनु मुस्लिस काछ में को खंस्हत पशक्चाव से ढठ दी गई था । दयी स्थिति में संस्हृत को पुनर्नवित करता ऋषि दुयानन्द के प्रतु्ाधिषो श्धा म्बन विधाजयों शा ही काम था। ही. ए. बो,




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