प्रमुख राजनीतिक व्यवस्थाएँ | Pramukh Rajnitik Vyavasthayein
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
560
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रभुदत्त शर्मा - Prabhudutt Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)চি संविधान का उदृकिक्रास 5
(1) मैग्नम कौंसीलियम की सम्मति पर ही राजा सामन्तों पर करारोपण करे ।
(2) किसी नागरिक को उस समय तक बन्दी न बनाया जाए और न ही उसको
निर्वासित किया जाए जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो जाए।
(3) किसी व्यक्ति को उसकी स्थिति एवं अपराध की मात्रा के अनुरूप ही
अर्थ-दण्ड दिया जाए। यह अर्थ-दण्ड नितान््त स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।
(4) एण्णा ज ८णापणा ए एक सुनिशिवित स्थान पर कार्य करे तथा राजा के
साथ ये स्थान-स्थान पर दौरे न किया करे।
(5) राजा चर्च के संगठन और उनके अधिकारियों की नियुक्ति मँ हस्तक्षेप न
करे |
(6) प्रमावशाली सामन्तो ओर पादरि्यो को महान् परिषद् मे अवश्य आमन्नित
किया जाये।
(7) विदेशी व्यापारियों के देश में स्वतन्त्र विधरण पर केवल युद्ध-काल में ही
प्रतिबन्ध हो. अन्यथा उर स्वतन्तरतापूर्वक देश भँ अने-जाने की अनुमति हो 1
(8) सम्पूर्ण राज्य में तेल के समान पैमानों का प्रयोग किया जाये।
আঁ ओर भिक के अनुसार “इसके द्वारा सामन्तो ने राजा पर यह प्रतिबन्ध
लगाकर कि वह अमुक कार्य करे और अमुक नहीं, देश की निरंकुशवाद की ओर प्रवाहित
होती हुई धारा को जनतन्त्र की दिशा में मोड़ दिया ।” अर्थात् मैग्नाकार्टा ने राजां की
निरंकुशता को सीमित कर दिया।
संसद का उदय--थॉम्पसन व जॉन्सन का मत है कि--'मैग्नाकार्टा वस्तुतः
ब्रिटिश संविधान का आघार-स्तम्म है क्योकि इसने इस सिद्धान्त का प्रवर्तन किया कि
'शाजा कानून से भुक््त नहीं है वरन् उसके अधीन है ।” इसी के साथ-साथ आधुनिक
संसद् (ण्ल एवाथ) के बीज ब्रिटिश संविधान में दृष्टिगोचर होने लगे । हेनरी
तृतीय के समय महान परिषद् (१1800 (200रथा।ण॥) को आधुनिक संसदीय व्यवस्था
की दिशा में आगे बढ़ने का अदसर दिया | अभी तक महान् परिषद् में केवल बिशप,
बैरन, राज्य के उत्तराधिकारी आदि ही सम्मिलित होते थे, अब इसमें प्रजा के प्रतिनिधिर्यो
को स्थान प्राप्त हुआ। विशप तथा बैरमों के साथ-साथ प्रत्येक 'शायर' से 22 उपाधि प्राप्त
व्यक्ति ((आरां810) तथा प्रत्येक बरो (8007१) से 22 स्वतन्त्र नागरिक आमन्त्रित किये
गये । इस प्रकार महान् परिषद् मँ बड़े-बड़े लोगो के साथ-साथ छोटे सर्गो का भी आना
आरम्म हुआ जिसने वर्तमान लोकसदन की नींव को जन्म दिवा । संसद् का प्रथमः
अधिवेशन 1265 में बुलाया गया ।
1272 ई. में एडवर्ड प्रथम सिंहासन पर बैठा | 1275 में ससद ने वैस्टर्मिस्टर का
प्रथम विधान शाह 81804 0६ एए८5( ७560 पारित किया, जिसमें भूमि-कर निश्चित
किया गया तथा निर्वाचन-व्यवस्था स्वीकृत की गई । 1278 में ग्लौसेस्टर का विधान
(51908 01 0100०८5/80) पारित हुआ 1 1279 में घादरियों के अधिकार सीमित कर
दिये गये | 1285 ई. में दैस्टमिंस्टर का द्वितीय विधान (5७८७8 8७00० ज ফা
74052) पारित हुआ जिसके अनुसार मृत्यु के बाद स्वतन्त्र नागरिकों की भूमि उनके
ज्येष्ठ पुत्रों को दिए जाने की व्यदस्था हुई 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...