श्री योगसर पर प्रवचन - भाग 5 | Sri Yogsaar Par Pravchan - Vol 5

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Book Image : श्री योगसर पर प्रवचन - भाग 5 - Sri Yogsaar Par Pravchan - Vol 5

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कमलकुमार जैन शास्त्री - Kamalkumar Jain Shastri

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शान्तिमती माताजी - Shantimati Mataji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ 0 अहंन्त का स्वरूप स्थान 1 तिथि ~ श्री विगस्बर लेन सन्द्रि बेलगछिया, कलकत्ता | ता० १०-५-५८ संसार में अनेक प्रकार के देव है, फिर ज॑नाचार्यो ने केवल अहन्त देव को ही क्‍यों नमरकार किया तथा उनका स्वरूप क्‍या हे ९ सर्वज्ञ सबता भद्रः स्बदिग्भदनों विश्वुः | অন भाषः सदा वन्दधः सवेसौर्यात्मको जिनः ॥ सत्र पदार्थों को जाननेवाला सब तरह से कल्याण रूप चारों दिशाओं में ज्ञिसका मुख दिखाई देता तथा ज्ञान की अपेक्षा जो सव व्यापक है ओर जिसकी वाणी का परिणमन सब भाषाओं में हं। जाताह सभी जीवां को सुखदायी रसला जिनेन्द्र देव ही बन्दन योग्य है) इसी प्रकार और भी कह्दा गया है ;-- अर्हन्‌ त्रलोकयसाम्राज्यं अहन्‌ पूजां सुरशिनाम्‌ । हतवान्‌ कमसम्पूतं अहन्नामा ततः स्मृतः ॥ तीन छोक के राज्य करने को योग्य, इन्द्रों द्वारा पूजा करने के योग्य, चार घातिया कम समह को जिनने नाश कर दिया है। इस कारण से अरहन्तका नाम कहा है । भावाथ--प्रभु अनन्त गुणों के स्वामी हैं, जितने गुण हैं उतने ही उन गुणों की अपेक्षा से प्रभु के नाम हैं जिनको कि वचनों के 61रा कहने को जिद्दा असमथ दे आचार्य प्रभु का स्मरण कुछ्ध गुणों के द्वारा कर रहे हे । सवक्ञ:--श्रभु साथक सबझ् है, वे अपने केबलक्षान द्वारा बिना इन्द्रियादिक के सहारे जगत के समस्त पदार्थों के गुण पर्यायों को क्रमरहिन एक ही समय में प्रत्यक्ष जानते हैं, इसीलिये सर्व हैं ( सर्वतो भद्रः) मद्रका अथ दै मंगल, कल्याण) भ्रष्ठ, दयावान आदि यद्र समस्त ही गुण प्रभु में पूरे रूप से पाये जाते हैं । प्रभु में अन्तिम सीमा को लिये हुये विराजमान हैं, प्रभु का नाम मात्र पापों का नाश करनेवाला है, आनन्द खानेवाला है, इसलिये प्रभु मंगल म्वरूप है। प्रभु के समवशरण में समस्त जाति- बिरोधी जीवों का बेर भाव दूर हो जाता है। सिंह और हाथी, व्याध और गाय, बिलाब और हंस कयादिक जाति त्रिरोधी जीव बर बुद्धि दो इकर आपस म मित्रता को श्राप्त होते हैं । बास्तव में बीतरागता की अदभुत महिमा है । केवलक्ञान के प्रकाशमान होने पर जिस स्थान पर स्वामी विराजमान होते हैं वहां से सो-सो योजन तक दुभिक्ष नहीं रहता, पुभिक्ष दोता हे। समबशरण में किसी प्राणी का बध




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