विवाहवृन्दावनम् | Vivahvrindavanam

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Vivahvrindavanam by सीताराम - Seetaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरणस्‌ १ ] वसन्तलदमी सहितम्‌ । ३ रेवती, हस्त, मधा, भौर स्वाती ये ११ नक्षत्र यदि वेधादि दोषों से रहित हों तो स्त्रियोंके पाणिग्रहणमें मज्ञलकारक होते हैं | तथा मीनको छोड़कर मकरादि ६ राशियों में ( अर्थात्‌ मकर, कुम्भ, मेष, बृष, मिथुन में ) सूर्य हों तो विवाइमें मद्गऊकारक होते हैं ॥ ३ ॥ विवादे पूर्वफाट्शुनोपुष्यो केश्विदुक्तो तदृदो्ष कथयति-- प्राचेतसः प्राह शुभं भगक्तं सीता तदृढा न सुर्ख सिषेवे । पृष्यस्तु पष्यत्यतिकाममेव प्रजापतेरप स शापमस्मात्‌ ॥ ४॥ सं°--प्रचेतसोऽपत्यं ८ प्राचेतसो युनिः ) भगक्ते ( पूवोप्ठास्ुनी- नक्रं ) शुभं प्राह, परन्तु तदूढा ( तस्मिन्‌ भगं विवाहिता ) सीता सुखं म सिषेवे, अर्थात्‌ वनवासादि दुःखमेव प्राप्तवती, तस्मात्‌ तत्‌ व्याञ्य- मेव । पुष्यस्तु अतिकामेव पुष्यति (बद्धंयति ) अस्मात स ८ पुष्यः ) प्रजा- पतेः ( ब्रह्मणः ) शापं आप प्राप्रवार्‌ , अतः पुष्योऽपि त्याज्य एवेत्यथः ॥ भा०--प्राचेतस मुनि ने पूवफाब्गुनी को विवाह मे शुम कहा है, परञ्च उसमें विवाहिता सीता ने सुख का सेवन नहीं किया । तथा पुष्य नक्षत्र तो अत्यन्त क्राम को ही बढ़ाता है इसलिये ब्रह्मा ने डसे शाप दिया है। सिद्ध हुआ कि ये दोनों नक्षत्र विवाह में त्याज्य हैं। इसलिये नारद!दि सुनियों ने इन दोनों को विवाह में विहित नहीं कहा ॥ ४ ॥ विशेष -ब्रह्म पुराणादि मे प्रसिद्ध है कि--पार्वतीजी ॐ सौन्दयं देखकर ब्रह्माजी मोहित हो गये पश्चात्‌ ज्ञान होने पर उन्होने बिचार किया कि मेरा विवाह पुष्य नक्षश्न में हुआ थां इसी से काम की अधिकता हुईं है इ।लिये ब्रह्माजी ने पुष्य- नक्षत्र को शाप देकर विवाह में निषेध कर दिया ॥ ४ ॥ अथ विवाहेइन्यमतं निरस्य स्वमतमाह-- ५ प्राहवसन्तोजंसहःकरग्रहः परेरदाहारि न हारि तम्मतम्‌ । रवेरवैस्ाग्णिुत्तरायणं पुरन्धिपाणिग्रहणे प्रायणम्‌ ।॥ ५ ॥ सं०--परे: ( अन्याचा्यैः ) श्रावडवसन्तोजसहःकरमहः ( प्रावड- वर्षो, वसन्‍्त:पसिद्ध:, ऊज: कार्तिक:, सहा मार्गशीष: एपु करग्रहः विवाहः) उदा्ारि ( उक्तः ) परच्व' तन्मतं न हारि ( न मनोहरम्‌ ) । यतो হন: ( सूर्यस्य ) अवैसारिणं ( मीनरद्ितं ) उत्तरायणं ( मकरादिराशिषटूकृमेव ) पुरन्श्रिपाणिपहणे (स््रीणां विवाहे) परायणं (श्रेष्ठ, बहुसम्मुतलात्‌) ॥५॥




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