जिनज्ञान दर्पण प्रथम भाग | Jingyan Darpan Volume - I
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सु° ॥ १॥ एकग ॥ ध्यानमुधारसनिर्मलष्यायने ॥
पायाक्षेवलनाण ।। वागसरसवरजनवबहताखा ॥ লি
मरहरणजगभ्भाण ।। सु० ॥२॥ फिटिकसिंहासणजिन
লীদ্দাননা ॥ तरुआशोकउदार ॥ छत्रचामरभासंडल
भलकता ॥ रुरदु दुभिभंणकार ॥ सु० ॥१॥ पुष्प
विष्टिरसुरध्वनीदोपतां ॥ साहिबजगसिणगार |
अनंतज्ञानदर्शनसमुखवलघणु' ॥ एदुवादशगुणश्रीकार ॥
सु० ॥४॥ वाणौशुधारसउप्शमरसभरी || दुर्गतिमूल
खपाय ॥ शिवसुखनाअरिशब्दादिककह्या ॥ जगता-
रकजिनराय || सु० ॥५॥ अंतरजामौरेसरणेआपरे ॥
हुआयोअवधार ।॥| ध्यानतुमारोनिशदिनसांभरे ॥
सरगणागतमुखकार ।। सु° ॥६॥ संबतच्रोगणोसैरेसुद
परखभाद्रवै ॥ वारसमं गलवार ॥ सुमतिजिणेसरसाहिव
समरिया ॥ भण'ददर्षभ्रपार ॥सु०॥७॥
अथ पंदमनिनस्तवन ।
निलेंपप्रद्म जिसा प्रभु || पद्मप्रभुपोच्छाण ॥ संयमलोधोतिः
गसमें | पायाचोधोनाण ॥ पग्मप्रमुनितसमरिये ॥१॥
एआंकणी ॥ ध्यानशुक्तप्रभुध्यायने ॥ पायाकैवलसोय ॥
दौनदयालतणीदिशा॥ कहणीनआवेकीय ॥ पद्म ०२॥
ममदसटपशमरसभरो॥ प्रभुतुमतणीवाणि।| चिसु-
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