जिनज्ञान दर्पण प्रथम भाग | Jingyan Darpan Volume - I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) सु° ॥ १॥ एकग ॥ ध्यानमुधारसनिर्मलष्यायने ॥ पायाक्षेवलनाण ।। वागसरसवरजनवबहताखा ॥ লি मरहरणजगभ्भाण ।। सु० ॥२॥ फिटिकसिंहासणजिन লীদ্দাননা ॥ तरुआशोकउदार ॥ छत्रचामरभासंडल भलकता ॥ रुरदु दुभिभंणकार ॥ सु० ॥१॥ पुष्प विष्टिरसुरध्वनीदोपतां ॥ साहिबजगसिणगार | अनंतज्ञानदर्शनसमुखवलघणु' ॥ एदुवादशगुणश्रीकार ॥ सु० ॥४॥ वाणौशुधारसउप्शमरसभरी || दुर्गतिमूल खपाय ॥ शिवसुखनाअरिशब्दादिककह्या ॥ जगता- रकजिनराय || सु० ॥५॥ अंतरजामौरेसरणेआपरे ॥ हुआयोअवधार ।॥| ध्यानतुमारोनिशदिनसांभरे ॥ सरगणागतमुखकार ।। सु° ॥६॥ संबतच्रोगणोसैरेसुद परखभाद्रवै ॥ वारसमं गलवार ॥ सुमतिजिणेसरसाहिव समरिया ॥ भण'ददर्षभ्रपार ॥सु०॥७॥ अथ पंदमनिनस्तवन । निलेंपप्रद्म जिसा प्रभु || पद्मप्रभुपोच्छाण ॥ संयमलोधोतिः गसमें | पायाचोधोनाण ॥ पग्मप्रमुनितसमरिये ॥१॥ एआंकणी ॥ ध्यानशुक्तप्रभुध्यायने ॥ पायाकैवलसोय ॥ दौनदयालतणीदिशा॥ कहणीनआवेकीय ॥ पद्म ०२॥ ममदसटपशमरसभरो॥ प्रभुतुमतणीवाणि।| चिसु-




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