कर्मसिद्धान्त - परिचय | Karmsiddhant Parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ११ ]- श्व विचारना यह है कि जीव कै स्वामाविक्र गुणों पर पर्दा डाल कर जीवको पराधीन (गुलाम) बनाने वाज्ञा कौन सा पदार्थ है । ` संसारी जीव जिस जिस शरीर में केदषं क्या गुलामी का मूल कांरण वह शरीर है ९ इस प्रश्न का उत्तर मिलता है. कि “नहीं” क्‍योंकि यदि ऐसा होता तो एक तो बह शरीर जीवके ' शासन (हुकूसत) में न रहता किन्तु शरीर को अधिकतर हमारी उचित अनुचित आज्ञा साननी पड़ती है हम अपने शरीर से जैसा जो कुछ अच्छा बुरा कार्य कराना चाह कराया करते हैं, शरीर उसमें जरा भी हीला हुज्जत नहीं करता। इस कारण हम शरीर के दास नहीं बल्कि शरीर हमारा दास है । दूसरे--- “यह शरीर भी तो किसी दूसरे निमित्तसे प्राप्त होता है । वीसरे- मरते समय शरीर तो यहां पड़ा रहं जाता है उसमे रहने बलि जीव को दूसरी योनिमें ले जने वाल्ला तोः को दूसरा: ही पदार्थ दो सकता है. जो कि भरण के पीछे भी संसारी जीवका पीछा नहीं छोड़ता, सदा उसके ऊपर सवार रहता हे । इस कारण यह मानना पड़ेगा कि इस स्थूल शरीर के सिवाय कोई अन्य ऐसी चीज है जो संसारी जीव के साथ सदा - रहती है और जिसके रहने से जीव के गुण पूर्ण विकसित नहीं होने पाते, जीव बात २ में पराधीन बना रहता है | जीव को परतन्त्र बनाने 'चाली च्रह चीज अमूर्तिक तो इस लिये नहीं हो सकती कि असूतिक पेदाथे इस मर्तिक शरीर




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